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समस्या समाधान विधि क्या है,अर्थ एवं परिभाषा,सोपान तथा सीमाएँ | Problem Solving method in Hindi

इसमें पोस्ट में समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method), समस्या समाधान का अर्थ एवं परिभाषा(Meaning & Definition of Problem Solving), समस्या समाधान के सोपान (Steps of Problem Solving), समस्यात्मक स्थिति का स्वरूप (Nature of Problematic Situation), समस्या समाधान शिक्षण का प्रतिमान  (Model of Problem Solving Teaching), समस्या समाधान शिक्षण हेतु आदर्श पाठ-योजना, समस्या समाधान शिक्षण की सीमाएँ, समस्या समाधान शिक्षण की विशेषताएं,समस्या समाधान शिक्षण की सीमाएँ, आदि को पढेगें।

Table of Contents

विभिन्न पद्धतियों पर आधारित पाठ-योजना(Lesson Planning Based on Various Methods)

शिक्षण तकनीकी में तीव्र गति से हए विकास के फलस्वरूप शिक्षण हेतु शिक्षा न विभिन्न नवीनतम पद्धतियों का आविष्कार किया ताकि छात्रों में नवीन चनौति सामना करने हेतु मौलिक चिन्तन का विकास किया जा सके। बहुत लम्बे समय तक हरबर्ट की पंचपदी का प्रचलन शिक्षण हेतु मुख्य रूप से किया जाता रहा, लेकिन आज हरबाट पंचपदी के साथ-साथ विशिष्ट शिक्षण के प्रयोजनार्थ विशिष्ट शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाने लगा है। शिक्षण की कुछ नवीनतम पद्धतियों का वर्णन पाठ-योजना सहित यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।

समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)

मानव जीवन में समय-समय पर अनेकानेक समस्याएँ आती रहती हैं और इनके परिणामस्वरूप मानव में तनाव, द्वन्द्व, संघर्ष, विफलता, निराशा जैसी प्रवृत्तियाँ जन्म लेती हैं जिनके कारण वह अपने जीवन से विमुख होने का प्रयत्न करता है। ऐसी परिस्थितियों से बचाने के लिए अच्छा शिक्षक छात्रों को प्रारम्भ से ही समस्या समाधान विधि से शिक्षण देकर छात्रों में तर्क एवं निर्णय के द्वारा किसी भी समस्या को सुलझाने की क्षमता का विकास करता है।

समस्या समाधान एक जटिल व्यवहार है। इस व्यवहार में अनेक मनोवैज्ञानिक प्रक्रियायें सम्मिलित रहती हैं। छात्र के समक्ष ऐसी समस्यात्मक परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं जिनमें वह स्वयं चिन्तन, तर्क तथा निरीक्षण के माध्यम से समस्या का हल ढूंढ़ सके। सुकरात ने भी आध्यात्मिक संवादों में इसका प्रयोग किया था। समस्या समाधान सार्थक ज्ञान को प्रदर्शित करता है, इसमें मौलिक चिन्तन निहित होता है। इसके लिए शिक्षण की व्यवस्था चिन्तन स्तर पर की जाती है।

                                

समस्या समाधान का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning & Definition of Problem Solving)

समस्या समाधान एक ऐसी शैक्षिक प्रणाली है जिसके द्वारा शिक्षक तथा छात्र किसी महत्त्वपूर्ण शैक्षिक कठिनाई के समाधान अथवा निवारण हेतु प्रयत्न करते हैं तथा छात्र स्वयं सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।

1. थॉमस एम. रिस्क-“समस्या समाधान किसी कठिनाई या जटिलता का एक पूर्ण सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया नियोजित कार्य है। इसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना या किसी अधिकृत विद्वान के विचारों की तर्करहित स्वीकृति निहित नहीं है, वरन् यह विचारशील चिन्तन की प्रक्रिया है।”

2 रॉबर्टगेने-“दो या दो से अधिक सीखे गये प्रत्यय या अधिनियमों को एक उच्च स्तरीय अधिनियम के रूप में विकसित किया जाता है, उसे समस्या समाधान अधिगम कहते हैं।”

समस्या समाधान के सोपान (Steps of Problem Solving)

बॉसिंग ने समस्या समाधान प्रविधि के निम्नलिखित सोपान बताये हैं :

(अ) कठिनाई या समस्या की अभिस्वीकृति,

(ब) कठिनाई की समस्या के रूप में व्याख्या,

(स) समस्या समाधान के लिए कार्य करना

(i) तथ्यों का संग्रह करना,

(ii) तथ्यों का संगठन करना,

(iii) तथ्यों का विश्लेषण करना।

(द) निष्कर्ष निकालना,

(य) निष्कर्षों को प्रयोग में लाना ।

समस्यात्मक स्थिति का स्वरूप (Nature of Problematic Situation)

बोर्न (1971) ने ‘उस स्थिति को समस्यात्मक स्थिति कहा है जिसमें व्यक्ति किसी लक्ष्य तक पहुँचने की चेष्टा करता है, किन्तु प्रारम्भिक प्रयासों में लक्ष्य तक पहुँचने में असफल रहता है। इस स्थिति में उसे दो या दो से अधिक अनुक्रियायें करनी होती हैं जिनके लिए उसे प्रभावशाली उद्दीपक संकेत प्राप्त होते हैं।’

जॉन्सन (1972) ने समस्यात्मक स्थिति में प्राणी के व्यवहार का विश्लेषण करते हुए कहा:

1. प्राणी का व्यवहार लक्ष्योन्मुख होता है।

2. लक्ष्य की प्राप्ति पर अनुक्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं।

3. समस्या समाधान हेतु विविध अनुक्रियाएँ की जाती हैं।

4. व्यक्तियों की अनुक्रियाओं में विभिन्नता होती है।

5. पहली बार समस्या समाधान में अधिक समय लगता है।

6. इससे सिद्ध होता है कि जीव में मध्यस्थ अनुक्रियायें होती हैं।

इस समस्यात्मक परिस्थिति का कक्षा शिक्षण में प्रयोग करते समय समस्या का चयन बहुत सावधानी से किया जाना चाहिए, जैसे :

1. समस्या जीवन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथा सार्थक हो,

2. यह छात्रों को स्वतः चिन्तन हेतु प्रेरित करे,

3. छात्रों की अवस्था तथा स्तर के अनुरूप हो,

4. समस्या किसी निश्चित विषयवस्तु तथा लक्ष्य से सम्बन्धित हो,

5. यह स्पष्ट तथा बोधगम्य हो।

समस्या समाधान शिक्षण के सोपान (Steps of Problem Solving Teaching)

जेम्स एम. ली (James M. Lee) ने समस्या समाधान शिक्षण के निम्नलिखित सोपान बताये हैं:

1. समस्या का चयन करना- समस्या का चयन करते समय उपर्युक्त वर्णित सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए।

2. यह समस्या क्यों है?- समस्या चयन क बाद समस्या की प्रकृति को छात्रों द्वारा सक्षमता से जाँचा जाता है।

3. समस्या को पूर्ण करना- समस्या का प्रकृति के अनुसार छात्र सूचनाओं, सिद्धान्तों कारणों आदि का संग्रह करते हैं, इसके बाद उनका संगठन एवं विश्लेषण करते हैं। शिक्षक समस्या समाधान हेतु पथ-प्रदर्शन नहीं करता, अपितु खोज एवं अध्ययन कार्यों तथा व्यक्तिगत एवं सामूहिक कठिनाइयों के समाधान में सहायता देता है।

4. समस्या का हल निकालना- छात्र समस्या से सम्बन्धित सामग्री का विश्लेषण करने के बाद उसका कोई उपयुक्त समाधान निकालते हैं।

5. समाधान का प्रयोग- छात्र समस्या का हल अथवा समाधान निकालने के बाद उनका प्रयोग जीवन में करते हैं।

समस्या समाधान के अनुदेशन के लिए पाँच सोपानों का अनुकरण किया जाता है जो ग्लेसर के बुनियादी शिक्षण प्रतिमान से सम्बन्धित हैं। इस प्रतिमान का विस्तृत वर्णन ‘शिक्षण के प्रतिमान’ नामक पाठ में विस्तार से किया जा चुका है।

समस्या समाधान शिक्षण का प्रतिमान (Model of Problem Solving Teaching)

समस्या समाधान शिक्षण का प्रतिमान शिक्षण के चिन्तन स्तर पर आधारित होता है। चिन्तन स्तर के शिक्षण के प्रवर्तक हण्ट है तथा इस स्तर के शिक्षण प्रतिमान को हण्ट शिक्षण प्रतिमान भी कहते हैं, इसमें मुख्य रूप से चार सोपानों का अनुसरण किया जाता है :

1. उद्देश्य,

2. संरचना :

(अ) डीवी की समस्यात्मक परिस्थिति,

(ब) कूट लेविन की समस्यात्मक परिस्थिति,

3. सामाजिक प्रणाली; एवं

4. मूल्यांकन प्रणाली।

समस्या समाधान शिक्षण हेतु आदर्श पाठ-योजना

वस्तुतः समस्या समाधान शिक्षण हेतु पाठयोजना बनाना तथा शिक्षण करना-दोनों ही जटिल कार्य हे तथापि इसके लिए शिक्षक को पाठयोजना बनाते समय निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना चाहिए :

1. पूर्व योजना-

शिक्षक को सर्वप्रथम पाठ को भली-भाँति समझकर उस पर चिन्तन करना, समस्या के विभिन्न पहलुओं को लिखना,छात्रों को समस्या के प्रति जिज्ञासु बनाना चाहिए, इस समय शिक्षक योजना के निर्माता के रूप में कार्य करता है । जैसे नागरिकशास्त्र शिक्षण करते समय संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों में क्या अन्तर है ? संविधान निर्माताओं द्वारा इनके बीच अन्तर के लिए कौन-कौन से आधार निर्धारित किये ? यह मूल समस्या छात्रों के समक्ष प्रस्तुत की जाती है । इससे छात्रों में मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के विषय में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है।

यदि समस्या के प्रस्तुतीकरण के साथ छात्र व्यक्तिगत रूप से समस्या से सम्बन्धित नवीन विचारणीय बिन्दुओं को प्रस्तुत करें तो उनकी जिज्ञासाओं को भी नोट करना चाहिए।

2. शिक्षण प्रदान करना-

कक्षा में समस्या का प्रस्तुतीकरण करने के बाद शिक्षक छात्रों के समक्ष मौलिक अधिकार और नीति-निर्देशक तत्त्वों पर कुछ प्रकाश डालेगा जिससे छात्रों में विषय के प्रति रुचि उत्पन्न होगी और वे अपनी प्रतिक्रियाएँ अभिव्यक्त करेंगे। शिक्षक का यह प्रयास होगा, कि छात्रों द्वारा प्रस्तुत अनेक समस्याओं में से केवल वह विषय से सम्बन्धित समस्याओं की ओर ही छात्रों को केन्द्रित करे। अब शिक्षक विभिन्न दृष्टिकोणों से चिन्तन करने के लिए छात्रों को उत्साहित करेगा कि वे कौन-कौन से कारक थे जिनके कारण संविधान में दो अलग-अलग अध्याय इस विषय से सम्बन्धित रखे गये।

इसके लिए छात्रों को भारत के संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, भारत एवं विश्व का इतिहास, सामाजिक ज्ञान तथा नागरिकशास्त्र की पुस्तकें, संविधान निर्मात्री सभा द्वारा व्यक्त किये गये विचार आदि विषय पढ़ने के लिए निर्देश देगा। छात्र प्रोत्साहित होकर रुचि के अनुसार अध्ययन करेंगे।

इस प्रकार शिक्षक छात्रों को विषयवस्तु से सम्बन्धित तथा अन्य सहायक सामग्री से सम्बन्धित सहायता प्रदान करेगा। इसके बाद छात्रों द्वारा अभिव्यक्त किये गये विषय से सम्बन्धित बिन्दुओं को संकलित किया जायेगा। इस समय शिक्षक की भूमिका एक आदर्श प्रबन्धक के रूप में होगी। संकलित विचारों पर संयुक्त रूप से विचार-विमर्श द्वारा समस्या के समाधान हेतु अनुमान निर्धारित किया जाता है।

अन्तिम चरण में जब विचार-विमर्श द्वारा मौलिक अधिकार तथा राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के बीच अन्तर का आधार छात्रों को ज्ञात हो जाता है, तो शिक्षक छात्रों से प्रश्न करता है, कि इन अधिकारों तथा नीति-निर्देशक तत्त्वों का संविधान में क्या स्थान है ? इन अधिकारों के साथ आपके क्या कर्त्तव्य हैं ? मानव जीवन के लिए यह कितने सार्थक सिद्ध हुए हैं ? इनमें कौन-कौन से दोष हैं ? इन दोषों के निवारणार्थ कौनसे उपाय हो सकते हैं ? आदि इन समस्याओं के चिन्तन से छात्र कुछ निष्कर्षों तक अवश्य पहुँचेंगे तथा भविष्य में आने वाली इन समस्याओं से सम्बन्धित आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक पहलुओं का निवारण करने में सक्षम होंगे। इस समय शिक्षक एक अच्छे मूल्यांकनकर्ता की भूमिका निभायेगा।

समस्या समाधान शिक्षण की विशेषताएं

1. यह छात्रों को समस्याओं के समाधान के लिए विशेष प्रशिक्षण प्रदान करता है।

2. इसमें छात्र क्रियाशील रहता है तथा स्वयं सीखने का प्रयत्न करता है।

3. यह मानसिक कुशलताओं, धारणाओं, वृत्तियों तथा आदर्शों के विकास में सहायक होता है।

4. यह छात्रों को आत्मनिर्णय लेने में कुशल बनाता है।

5. इससे छात्रों की स्मरण-शक्ति के स्थान पर बुद्धि प्रखर होती है।

6. इसके द्वारा छात्रों में मौलिक चिन्तन का विकास होता है।

7. यह छात्रों में उदारता, सहिष्णुता और सहयोग जैसे गुणों का विकास करती है।

समस्या समाधान शिक्षण की सीमाएँ

1. सभी विषयों को समस्याओं के आधार पर संगठित करना लाभदायक नहीं होता।

2. इसमें समय अधिक लगता है था छात्रों की प्रगति बहुत धीमी गति से होती है।

3. इसके अधिक प्रयोग से शिक्षण में नीरसता आ जाती है।

4. इसका प्रयोग केवल उच्च स्तर पर ही किया जा सकता है।

5. छात्र को समस्या का अनुभव करवाना तथा उसे स्पष्ट करना सरल नहीं है।

6. इसमें सामहिक वाद-विवाद को ही शिक्षण की प्रभावशाली व्यहरचना पाता जाता है।

7. इस शिक्षण में स्मृति तथा बोध स्तर के शिक्षण की भाँति किसी निश्चित कार्यक्रम का अनुसरण नहीं किया जा सकता।

8. इसमें छात्र तथा शिक्षकों के मध्य सम्बन्ध निकट के होते हैं। छात्र शिक्षक की आलोचना भी कर सकता है। निष्कर्षतः समस्या समाधान शिक्षण हेतु छात्रों की आकाँक्षा का स्तर ऊँचा होना। चाहिए तथा उन्हें अपनी समस्या के प्रति संवेदनशील और उनके लिए चिन्तन का समुचित वातावरण होना चाहिए, तब ही यह शिक्षण सफल होगा।

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समस्या समाधान विधि- विशेषताएँ, प्रक्रिया, पद / सोपान, गुण, दोष

समस्या समाधान विधि

अनुक्रम (Contents)

समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि प्रोजेक्ट तथा प्रयोगशाला विधि से मिलती-जुलती है परन्तु यह जरूरी नहीं है कि प्रत्येक समस्या का समाधान प्रयोगशाला में ही हो। कुछ कम जटिल समस्याओं का समाधान प्रयोगशाला से बाहर भी किया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग छात्रों में समस्या समाधान करने की क्षमता उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। छात्रों से यह आशा की जाती है कि वे स्वयं प्रयास करके अपनी समस्याओं का हल स्वयं ही निकालें। इस विधि में छात्र समस्या का चुनाव करते हैं और उसके कारणों की खोज करते हैं, परीक्षण करते हैं और समस्या का मूल्यांकन भी करते हैं।

तकनीकी शिक्षण में इस विधि का प्रयोग प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। छात्रों के लिए यह अत्यन्त उपयोगी एवं मनोवैज्ञानिक मानी जाती है। इससे बालकों की चिंतन और तर्क शक्ति का विकास होता है परन्तु इसका प्रयोग प्राथमिक स्तर पर सफलतापूर्वक करना सम्भव नही है।

आसुबेल (Ausubel) के अनुसार, समस्या समाधान में सम्प्रत्यय का निर्माण तथा अधिगम का अविष्कार सम्मिलित है।”

According to Ausubel, “Problem solving involves concept formation and discovery learning.”

गैग्ने (Gagne) के अनुसार, “समस्या समाधान घटनाओं का एक ऐसा समूह है जिसमें मानव किसी विशिष्ट उददेश्य की उपलब्धि के लिए अधिनियमों अथवा सिद्धान्तों का उपयोग करता है।”

According to Gagne, “Problem solving is a set of events in which human being uses rules to achieve some goals.”

रिस्क (Risk) के अनुसार, “शिक्षार्थियों के मन में समस्या को उत्पन्न करने की ऐसी प्रक्रिया जिससे वे उद्देश्य की ओर उत्साहित होकर तथा गम्भीरतापूर्वक सोच कर एक युक्तिसंगत हल निकालते है, समस्या समाधान कहलाता है।”

According to Risk, “Problem solving may be defined as a process of raising a problem in the minds of students in such a way as to stimulate purposeful reflective thinking in arriving at a rational solution.”

रॉबर्ट गेने के अनुसार, “दो या दो से अधिक सीखे गए कार्य या अधिनियमों को एक उच्च स्तरीय अधिनियम के रूप में विकसित किया जाता है उसे समस्या-समाधान अधिगम कहते हैं।”

शिक्षण की इस विधि में शिक्षण तीनों अवस्थाओं के रूप में कार्य करता है तथा छात्रों को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने की योग्यता प्राप्त होती है।

समस्या की विशेषताएँ (Characteristics of a Problem)

अध्ययन के लिए चुनी जाने वाली समस्या में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए-

(1) समस्या छात्रों के पूर्वज्ञान से सम्बन्धित होनी चाहिए ताकि उनको समस्या का हल ढूँढने में आसानी हो।

(2) समस्या छात्रों के लिए उपयोगी तथा व्यावहारिक होनी चाहिए।

(3) समस्या छात्रों की रुचि एवं दृष्टिकोण के अनुसार होनी चाहिए।

(4) समस्या चुनौतीपूर्ण होनी चाहिए जिससे छात्रों में सोचने तथा तर्क करने की शक्ति का विकास हो।

(5) समस्या पाठ्यक्रम के अनुसार होनी चाहिए तथा इतनी विशाल नहीं होनी चाहिए कि छात्रों को उसका समाधान ढूँढने के लिए विद्यालय अथवा शहर से बाहर जाना पड़े।

(6) समस्या के आलोचनात्मक पक्ष की ओर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। यह परिकल्पनाओं का मूल्यांकन करने के लिए अति आवश्यक है।

(7) समस्या के समाधान में उपयोग किए जाने वाले उपकरण विद्यालय की प्रयोगशाला में उपलब्ध होने चाहिए।

(8) समस्या छात्रों पर एक भार की तरह नहीं होनी चाहिए ताकि छात्र प्रसन्नतापूर्वक समस्या समाधान की विधि का उपयोग कर सकें।

(9) समस्या नई तथा व्यावहारिक होनी चाहिए जिससे छात्रों में कल्पना शक्ति तथा वैज्ञानिक क्षमताओं का विकास हो सके।

(10) समस्या छात्रों के मानसिक स्तर तथा शारीरिक क्षमताओं के अनुकूल होनी चाहिए।

समस्या समाधान की प्रक्रिया (Process of Problem Solving Method)

किसी भी विषय के शिक्षण को प्रभावी बनाने हेतु तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न नवीन तथ्यों की खोज हेतु समस्या समाधान विधि का प्रयोग किया जाता है।

किसी भी विषय के शिक्षण में छात्रों के सम्मुख जब कोई ऐसी परिस्थिति आती है जिससे उन्हें कठिनाई या समस्या का सामना करना पड़ता है तो इससे पूर्व छात्र विषय के सम्बन्ध में जो कुछ सीखा या पढ़ा है, उसके द्वारा भी इन समस्याओं का समाधान खोजने में कठिनाई आती है तो इस प्रकार की परिस्थितियों में आवश्यक रूप से कुछ नवीन तथ्यों एवं अनुभवों पर आधारित ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य हो जाता है जिससे समस्या का हल खोजा जा सके।

अतः किसी परिस्थिति का सामना करने हेतु समस्त छात्रों समक्ष समस्या समाधान विधि की प्रक्रिया निम्नलिखित है-

(1) सर्वप्रथम यह जाँच लेना चाहिए कि समस्या किस प्रकार की है?

(2) उस समस्या का समाधान किस प्रकार हो सकता है।

(3) इसके पश्चात् छात्र समस्या से सम्बन्धित सृजनात्मक तथा गम्भीर चिन्तन में प्रयत्नरत रहते हैं।

(4) छात्र समस्या के अनुकूल शैक्षिक अनुभव प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

(5) छात्र प्रकट समस्या का समाधान विभिन्न विकल्पों, जैसे- अर्जित अनुभवों आदि के आधार पर वस्तुनिष्ठ समाधान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

(6) इसके पश्चात् छात्र इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्राप्त समस्या का समाधान उपयुक्त एवं सही है अथवा नहीं।

उपर्युक्त विभिन्न चरणों के द्वारा छात्र किसी विशेष समस्या का समाधान खोजकर नवीन ज्ञान एवं कौशल अर्जित करने में सफल हो जाते हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से किसी समस्या का समाधान करने का प्रशिक्षण छात्रों को भूगोल एवं अर्थशास्त्र के विषय विशेष का समुचित ज्ञान प्रदान कराने में अत्यन्त सहायक सिद्ध हो सकता है।

समस्या समाधान विधि के पद / सोपान (Steps / Stages Involved in the Problem Solving Method)

समस्या समाधान पद्धति के पद / सोपान निम्नलिखित हैं-

(1) समस्या का चयन करना (Selection of the Problem)- तकनीकी शिक्षण में किसी समस्या-समाधान विधि में समस्या का चयन करते समय शिक्षकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि छात्रों को ऐसी समस्या प्रदान की जाए जिससे वे उसे हल करने की आवश्यकता समझ सके। छात्र एवं शिक्षक दोनों को सम्मिलित रूप से समस्या का चयन करना चाहिए। यदि सम्भव हो तो शिक्षकों को छात्रों के समक्ष उत्पन्न समस्या से ही एक समस्या का चयन कर लेना चाहिए। समस्या का निर्धारण करते समय मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिए कि छात्रों के समक्ष समस्या अत्यन्त व्यापक न हो व समस्या स्पष्ट होनी चाहिए।

(2) समस्या का प्रस्तुतीकरण (Presentation of the Problem)- समस्या का चयन करने के उपरान्त दूसरा चरण समस्या का प्रस्तुतीकरण आता है। समस्या का चुनाव करने के बाद शिक्षक छात्रों के समक्ष चयनित समस्या का सम्पूर्ण विश्लेषण करते हैं। शिक्षकों द्वारा किया गया यह विश्लेषण विचार-विमर्श आदि के माध्यम से हो सकता है। इसके पश्चात् अध्यापक छात्रों को समस्या से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों की जानकारी प्रदान करते हैं। जैसे- समस्या की पद्धति क्या होगी, प्रदत्त संकल्प कहाँ से और कैसे होंगे। इन समस्त जानकारियों के बाद छात्रों को समस्या की समस्त जानकारी प्राप्त हो जाती है विभिन्न तरीकों से आगे की प्रक्रिया के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त हो जाती है।

(3) उपकल्पनाओं का निर्माण (Formulation of Hypothesis)- समस्या-समाधान के तृतीय चरण में समस्या का चयन करने के उपरान्त उसका प्रस्तुतीकरण तथा उपकल्पनाओं का निर्माण आता है। इन परिकल्पनाओं के निर्माण के उपरान्त उत्पन्न समस्याओं के क्या कारण हो सकते हैं, उनकी एक विस्तृत रूपरेखा तैयार कर ली जाती है। इस विधि में परिकल्पनाओं के निर्माण के द्वारा छात्रों की समस्या के विभिन्न कारणों पर गहनता से अध्ययन चिन्तन करने की क्षमता का विकास होता है। अतः समस्या से सम्बन्धित उपकल्पनाएँ ऐसी होनी चाहिए जिनका सरलता से परीक्षण किया जा सके।

(4) प्रदत्त संग्रह (Collection of Data) – समस्या से सम्बन्धित परिकल्पनाओं के निर्माण के उपरान्त चयनित परिकल्पनाओं का छात्रों के द्वारा संकलित प्रदत्तों के माध्यम से परीक्षण किया जाता है। विभिन्न प्रदत्त संकलनों छात्रों को समस्या से सम्बन्धित दिशा-निर्देश देने हेतु निर्णय लेने में शिक्षक यह सहायता प्रदान करें कि प्रदत्त संकलन कहाँ से और कैसे प्राप्त किया जाए। अध्यापकों की सहायता से छात्र विभिन्न संदर्भों से आवश्यक प्रदत्तों का निर्माण कर लेते हैं।

(5) प्रदत्तों का विश्लेषण (Analysis of Data) – समस्या विधि के प्रस्तुत पद में उपरोक्त पदों में समस्या का चयन, प्रस्तुतीकरण, उपकल्पनाओं की निर्माण तथा चतुर्थ पद में प्रदत्तों का संग्रह करने सम्बन्धी अध्ययन किया जाता है। इसके पश्चात् पंचम पद अर्थात् प्रस्तुत पद में प्रदत्तों का विश्लेषण के माध्यम से उनका प्रयोग किया जाता है। विभिन्न प्रदत्तों के मध्य स्थापित सम्बन्धों को ज्ञात किया जाता है। इस प्रक्रिया के लिए विभिन्न तथ्यों को व्यवस्थित एवं संगठित करने के पश्चात् उनकी व्याख्या की जाती है। अतः समस्या के प्रदत्तों का विश्लेषण करना अनिवार्य होता है।

(6) निष्कर्ष निकालना (Find Conclusion)- उपरोक्त सभी प्रक्रियाओं या पदों से होते हुए समस्या समाधान के पदों का विश्लेषण हो जाता है। इसके पश्चात् प्रदत्त संग्रहों विश्लेषण के उपरान्त निष्कर्ष प्राप्त किए जाते हैं। निष्कर्ष में समस्या से सम्बन्धित परिकल्पनाएँ प्रदत्त विश्लेषण में सही एवं उपयुक्त पाई जाती हैं उनके आधार पर समस्या के समाधान से सम्बन्धित उपयुक्त निष्कर्ष प्रदान किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इन प्राप्त निष्काष को नवीन परिस्थितियों में लागू करके समस्त तथ्यों तथा निष्कर्षों की जाँच कर ली जाती है। अतः उपरोक्त सभी पदों के माध्यम से समस्या समाधान विधि की प्रक्रिया / सोपान निर्धारित होते हैं तथा समस्या से सम्बन्धि समाधान प्राप्त हो जाते हैं।

समस्या समाधान पद्धति के गुण (Merits of Problem Solving Method)

समस्या समाधान पद्धति के गुण निम्नलिखित हैं-

(1) छात्रों में चिंतन शक्ति का विकास होता है।

(2) छात्रों में समस्याओं का वैज्ञानिक तरीके से समाधान खोजने की अभिवृत्ति तथा योग्यता का विकास होता है।

(3) शिक्षण में छात्रों की क्रियाओं की प्रचुरता के कारण अधिगम अधिक स्थायी होता है।

(4) इस पद्धति से शिक्षण करते समय छात्रों की व्यक्तिगत भिन्नताओं का ध्यान रखा जा सकता है।

(5) समस्या का चयन छात्रों की रुचि एवं मानसिक स्तर के अनुकूल होता है।

(6) छात्रों को विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु प्रेरित किया जाता है।

(7) समस्या पर किए गए कार्य के लिए छात्रों को पर्याप्त अभिप्रेरणा प्रदान की जाती है।

समस्या समाधान पद्धति के दोष (Demerits of Problem Solving Method)

समस्या समाधान पद्धति के दोष निम्नलिखित हैं-

(1) प्रत्येक विषय-वस्तु को समस्या समाधान पद्धति से नहीं पढ़ाया जा सकता है।

(2) समस्या समाधान पद्धति से शिक्षण में समय बहुत अधिक लगता है।

(3) सही समस्या का चुनाव स्वयं में एक समस्या है।

(4) इस विधि का उपयोग केवल बड़ी कक्षा में ही किया जा सकता है।

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समस्या समाधान कौशल (Problem Solving Skills) क्या हैं?

एक ऐसा कौशल जब व्यक्ति अपनी व दुसरो की परेशानियों (problems) का हल ढूढ़ने का गुण रखता हों l इसका अर्थ यह हुआ की व्यक्ति आ रही परेशानियों का हल बड़ी जल्दी और आसानी से कर लेता है l और ऐसे उपायों को अपनाता है जिससे उसे आ रही दिक्कतों का सामना करने में एक शक्ति मिले l सामान्य तौर पर देखा जाए तो हमें अपनी जीवन मे ऐसे कई बार ऐसी परेशानी और दिक्कतों से गुजरना पड़ता है जब हम अकेले होते है और हमारे सुझाव देने वाले व्यक्ति हमसे हमारी बचकाने हरकतो की कोई उमीद नहीं करते इस जगह हमें अपने स्वयं के निर्णय खुद लेना पड़ता हैं  और आगे बढ़ना (move forward) होता है l

अब यहाँ देखा जाए तो दूसरी ओर ध्यान दे तो एक कर्मचारी, एक पुलिसकर्मी, अधिकारी आदि को भी इस स्किल की जरूरत होतीं हैं क्योंकि वहा बड़े स्तर पर उच्च विचार व समाधान की जरूरत होती है और ऐसे अनेकों परिस्थिति (situations) आती है जब हमें अपने कौशल की जरूरत दिखानी होतीं है वैसे देखा जाए तो कुछ व्यक्तियों मे यह गुण जन्मजात दिखाई देता है वजह ये होतीं की हमे अपने परिवार के अंदर ऐसे लोग जरुर मिलते है जो अपनी तेज बुद्धि से प्रभावित करते है और बच्चे  अपने माता पिता को हमेशा कॉपी करते देखे गए है और कुछ अपने माता पिता के गुण प्राप्त कर लेते हैं l 

Problem Solving Skills मे कौन-कौन से कौशल सामिल होते है ? 

इसके विभिन्न टाइप को इस प्रकार समझा जा सकता हैं जो नीचे दिए गए तालिकाओं में हैं l

  • बातचीत ( communication ) 

प्रायः देखा गया है की कुछ परिस्थिति ऐसी भी होतीं है जहाँ बातचित के माध्यम से भी समस्या का हल निकला जाता है l देखा गया है की बड़े बड़े कंपनियाँ ऐसे कर्मचारी वर्ग की तलाश मे रहती है जिनका communication skills मजबूत हो ताकि आने वाले क्लाइंट या कस्टमर से अच्छी प्रकार से बातचित करने में सक्षम हो l कई बार ऐसी स्थिति आ जाती है जहाँ समस्याओं को बहस के माध्यम से भी सुलझाया जा सकता है l उदाहरण हम कोर्ट मे वकीलों का भी ले सकते है जहाँ वे अपनी skills का प्रयोग बहुत ही खूबसूरत ढंग से करते हैं l

  • निर्णय निर्माण (Decision making ) 

इस कौशल को सबसे अधिक लोगो ने सही माना है क्योंकि व्यक्ति जब स्वयं निर्णय लेता है और उन लिए निर्णय पर काम करता है तो उसे अंदर से साहस (encourage) और आत्मविश्वास (self-confidence) जैसे भावना का निर्माण होता हैं l

  • खोज करना (Research)  

कुछ व्यक्तियों की प्रवृति चीजों को ढूंढ कर तथा उसमे छुपे रहस्यों को जानकर संतुष्टि मिलती हैं l यही परिस्थिति उसे जब अपनी किसी समस्या का समाधान करने के लिए बोला जाए तो खोज जैसी विधि को अपनाएगा और ऐसे तथ्य को सामने लाने की कोशिश करेगा ताकि उसे स्वयं को खुशी मिले l

  • विश्लेषण करना (Analysis ) 

कई बार समस्या को देखने मात्र से ही उसका हल नहीं निकला जा सकता l समस्या इतनी गहरी होतीं हैं की हमें उसमे छुपे राज को ढूँढना और समाधान करना शामिल होता हैं l एक अध्यापक अपने शिष्यों के खराब परिणाम आने पर आ रही परेशानियों को ढुंढता है फिर बच्चों की शिक्षा विधि मे बदलाव लाकर उसे आगे की शिक्षा करवाता हैं l

  • स्वतंत्र निर्णय (Independent thinking) 

यह विधि सबसे  बढ़िया मानी गयी हैं l कई बार परिस्थिति ऐसी आ जाती है जब हम उसे समय पर छोड़ देते है ताकि समय के साथ कुछ-कुछ चीजें बदल जाती है उन्हें कुछ पल के लिए छोड़ दिया जाए तो समाधान अपने आप निकल जाता है l उदाहरण के रूप में समझे तो हम पायेंगे की एक फेक्ट्री के मजदूरों को कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है ताकि वो अपना adjustment  करने में सक्षम हो जाए l कुछ दिनों बाद हमें पता लगेगा की मजदूर वर्ग बनाई गयी समय सारणी को फॉलो कर रहे हैं l

  • सबके साथ मिलकर काम करना ( teamwork)

प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल (problem solution skills) में teamwork को शामिल किया गया है कभी कभी कुछ ऐसी प्रॉब्लम होती है जिन्हे अकेले सुलझा पाना मुश्किल होता है या इसमें ज्यादा समय निकल जाता है लेकिन ऐसे में अगर सब मिलकर उस प्रॉब्लम पर काम करे तो उसको जल्दी ठीक किया जा सकता है उदहारण के  तौर पर मान लो आपकी कंपनी में किसी काम में  कुछ प्रॉब्लम हुई है ऐसे में अगर पूरी team मिलकर चले तो उसको एक निश्चित समय में ठीक किया जा सकता है।

प्रोब्लॉम सोल्विंग स्किल (Problem Solving Skills) की खासियत 

  • निर्देशक की भूमिका  

जी हाँ अगर आपको समस्या समाधान में काबिल पाया जाता हैं तो आपको एक निर्देशक की भूमिका निभाने का अवसर जरूरत मिलेगा l आप लोगों के लिए एक खास व्यक्ति बन सकते हैं जो हर समस्याओं का हल जनता हों l

  •   Leadership की भूमिका

आपका नेता वाला गुण लोगों को तभी पसन्द आता है जब आप कठिन परिस्थिति में लोगों के साथ खड़े रहेंगें और समस्या में आपका यह गुण आपको एक अलग पहचान देगा l

  •  समायोजन (Adjustment ) 

अगर आप आपका solution लेवल हाई हैं तो आप किसी के भी लोकप्रिय व्यक्ति बन सकते है एक इंस्टीट्यूशन को समझदार व solution-orientated  की नजर के कामकर्ता की जरूरत होतीं हैं l

  •  Interview   

किसी संस्था में अगर आप अच्छी जॉब पाना चाहते है तो आपको अपनी mind की capability से अपने बॉस को खुश करना होगा हो सकता है की वो आपकी मेंटलिटी देखने के लिए ऐसी परिस्थिति पैदा करे जिससे आप घबरा जाए तो यहाँ आपका solution area मजबूत होना आवश्यक हैं l 

  •  परेशानियों के प्रति चेतनशील

जिन व्यक्तियों मे समस्या समाधान की कौशलता (problem solving skills) पूर्ण रूप से विकसित होतीं है वे व्यक्तियों आने वाली परेशानियों के प्रति चिंता मे नहीं रहते बल्की उससे अच्छा वेकल्पिक रास्ता ढूंढ लेते है ताकि उसमें  भी कुछ productive मिले l और समस्याओं से सीखकर आगे बढ़ते हैं l

Problem Solution Skills में Improvement कैसे लाएं ?

यहाँ हम कुछ  ऐसे tips बताएँगे जिनका उपयोग करके आप  भी अपना problem solving skills इम्प्रूव  कर सकते है –

  • समस्याओं पर गहनता से अध्यन करना अनिवार्य हैं जैसे जैसे हम अपनी मानसिक क्षमता का प्रयोग उलझनों को मिटाने में सहायक पायेंगे तो हम जानेंगे की हमारी मानसिक क्षमता कहाँ तक deserve कर रही हैं l
  • समस्या समाधान किताबें तथा आर्टिकल्स को पढ़ने से भी समस्या समाधान स्किल को कही हद तक improve होगा क्योंकि कई बार हम पड़ते समय अपने जवाबों का हल भी पा लेते है ये तब होता है जब हम उन किताबों व आर्टिकल में समाधान से सम्बन्धित विषयों के प्रति सुविचार पाते हैं l
  • समस्या के समय अपने आप को शांत रखना और फिर उन पर गहनता से विचार करना और फिर समस्या का समाधान करना पॉजिटिव पॉइंट है l
  • अपने आप को समस्या की परिस्थिति में रखने से भी मानसिक एकाग्रता (concentration) विकसित होतीं हैं l अगर हम परेशानियों से भागेंगे तो समस्या का समाधान स्वयं कभी ढूंढने के काबिल नहीं हो पाएंगे l इसलिए किसी भी समस्या से भागने से ज्यादा समय उसको सुलझाने पर देना चाहिए 
  • हम दूसरे लोगों की समाधान करने के तरीको observe करके भी अपनी कौशलता बढ़ा सकते हैंl 

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समस्या समाधान विधि - Problem Solving Method : SHIRSWASTUDY

समस्या समाधान विधि  ( problem solving method ).

समस्या समाधान विधि , problem solving method

समस्या समाधान का अर्थ ( Meaning of problem resolution )

विद्यार्थियों को शिक्षण काल में अनेक समस्याओं या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जिनका समाधान उसे स्वयं करना पड़ता है। समस्या समाधान का अर्थ है लक्ष्य को प्राप्त करने आने समस्याओं का समाधान   इसको समस्या हल करने की विधि भी कहते हैं।

व्याख्यान प्रदर्शन विध

व्याख्यान विधि

समस्या समाधान विधि परिभाषा ( Problem Resolution Method Definition )

वुडवर्थ ( Woodworth) “ समस्या-समाधान उस समय प्रकट होता है जब उद्देश्य की प्राप्ति में किसी प्रकार की बाधा पड़ती है। यदि लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग सीधा और आसन हों तो समस्या आती ही नहीं।"

स्किनर ( Skinner) “ समस्या-समाधान एक ऐसी रूपरेखा है जिसमें सर्जनात्मक चिंतन तथा तर्क दोनों होते हैं।"

समस्या समाधान विधि के महत्व (Importance of problem solving method )

समस्या समाधान विधि मनोवैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक विधि है। समस्या विद्यार्थी के पाठ्यवस्तु से संबंधित होती है। इसमें छात्र को करके, सीखने के अवसर उपलब्ध होते हैं। 

इस विधि में विद्यार्थी के सामने एक समस्या रखी जाती है और विद्यार्थी उसका हल ढूंढने के लिए प्रयास करता है। अध्यापक हल ढूंढने के लिए प्रेरित करता है।

अन्वेषण विधि

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps of Problem Solving Method)

  • समस्या की पहचान

a.    समस्या का स्पष्ट विवरण अथवा समस्या कथन

b.    समस्या का स्पष्टीकरण विद्यार्थियों द्वारा आपस में चर्चा

c.    समस्या का परिसीमन समस्या का क्षेत्र निर्धारित करना

  • परिकल्पना का निर्माण - जांच एवं परीक्षण के लिए परिकल्पना का निर्माण।
  • प्रयोग द्वारा परीक्षण - परिकल्पनाओं का परीक्षण करना
  • विश्लेषण
  • समस्या के निष्कर्ष पर पहुंचना

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of the Problem Solving Method)

  • विधि से विधार्थी सहयोग करके सीखने के लिए प्रेरित होते हैं।
  • दाती समस्या को हल करने की प्रक्रिया में शामिल होकर उसे हल करना सीखते हैं।
  • विद्यार्थी परिकल्पना निर्माण करना सीखते हैं और इस प्रक्रिया से उसकी कल्पनाशीलता में वृद्धि होती है।
  • विद्यार्थी जीवन में आने वाली समस्याओं को हल करना सीखते हैं।
  • यह विधि विद्यार्थी में वैज्ञानिक अभिवृत्ति के विकास में सहायक हैं।

समस्या समाधान विधि के दोष Problem resolution method faults

  • इस विधि के प्रयोग में समय ज्यादा लगता है।
  • पाठ्य-पुस्तक का अभाव होता है।
  • इस विधि में त्रुटियाँ प्रभावहीन के कारण होती है।
  • गति धीमी रहती हैं।
  • इस विधि से हर विषय वस्तु का शिक्षण नहीं किया जा सकता है।
  • समस्या उचित रूप से चुनी हुई न हो तो वह असफल रहती हैं।
  • चूंकि इस विधि में प्रायोगिक कार्य भी करना होता है। अतः शिक्षक का प्रायोगिक कार्य में दक्ष होना आवश्यक होता है।

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problem solving method in hindi

कोई भी मुशकिल १००% कैसे सुलझाएं | Problem solving techniques in Hindi

Problem solving techniques in Hindi

बचपन से लेके आज तक हमारे लाइफ में कई problems आये है। Exam का tension हो या job की चिंता, शादी का काम हो या paise का problem हमे हर मोड़ पर किसी न किसी problem को face करना ही पड़ता है। हम में से ऐसा कोई नयी है जिसे अब तक लाइफ में कोई problem नहीं आया हो।

पर वक़्त के साथ problems चली जाती है और हम life में आगे बढ़ जाते है। तो यह  ‘problem’ exactly है क्या?

हमारे आसपास बहुत सारे लोग ऐसे है जो difficult situation सामने आते ही डरके मारे भाग जाते है या पूरी हिम्मत हार जाते है। और कुछ लोग ऐसे भी होते है जो बिना हिचकिचाहट के निडर होके उस मुसीबत का सामना करते है और उस situation से पहले से ज्यादा strong होके निकलते है।

कुछ लोगोको problem solve करने का skill आता है तो कुछ लोगोके पास यह skill बिलकुल नहीं होता जिसके कारण वह हमेशा उलझे रहते है। इस skill को Problem Solving Skill या फिर Problem solving techniques कहते है।

यह skill हमे स्कुल या college में नहीं सिखाया जाता बल्कि खुद ही सीखना पड़ता है। आज हम आपको इस skill के बारे में बताएँगे।

Problem को solve करने के पहले problem को ठीक से समझना बहुत जरुरी है। अक्सर लोग main problem से अनजान रहते है और इसके कारण कुछ कर नहीं पाते। problem को solve करना दूर वह उसमे और उलझने लगते है।

Problem को सुलझाने का सबसे पहला कदम है Problem को exactly समझना। उसे accept कर लेना। जब तक problem को accept नहीं करोगे, स्वीकार नहीं करोगे तब तक problem को solve नहीं कर पाओगे।

7 tips problem solving ability in Hindi

१. Problem को ठीक से समझ लेना।

अक्सर कोई problem आने के बाद हम बौखला जाते है, panic होते है और उसपे अचानक से कोई reaction दे देते है। ऐसा करने से problem solve होने से ज्यादा बढ़ती है। इसीलिए पहले problem को ठीक से समझो। उसको बिना किसी पुराने विचारो से जोड़े हुए देखो और उसकी जटिलता को समझो। problem जब तक ठीक से समझ नहीं आता तब तक आप उसपे कुछ नहीं कर सकते। इसीलिए जरा रुक के problem की गेहेराई को समझो।

२ Problem को फ्रेश नज़र से देखना।

अक्सर हम किसी problem या difficult situation को देखकर मन में पहले से ही अपना मत बना लेते है । इस कारण आपको उस problem को solve करने के नए तरीके नज़र आना बंद हो जाता है । इसीलिए यह बहुत जरुरी है की आप हर problem को fresh mind से देखे और उसे नए नए तरीको से solve करने की कोशिश करे । आप जैसा दुनिया को देखोगे वैसा ही पाओगे और problem होने के अलावा और complex होने लगेगी।

३. Open Mind के साथ problem solve करना।

सामने आयी हुयी problem से लड़ते वक़्त आपके दिमाग में कई सारे ideas आएंगे जो शायद उस वक़्त आपको बेकार लगे पर ऐसी अजीब ideas को भी लिख लो या उसपे समय मिलते ही गेहेराई में सोचने के लिए park कर दो । कई बार ऐसे अजीब ideas ही उस problem का solution दे देता है जिसपे हम दिनभर सोच कर भी कुछ हासिल नहीं हो पाता ।

इसीलिए अपने दिमाग में आयी हर चीज़ पर गौर करो । अपने मन को नए नए ideas के लिए खोल दो। हर चीज़ को positive नज़र से देखना शुरू कर दो । सकारात्मक सोच का जादू ऐसा होता है की मुश्किल से मुश्किल situations में भी आप को रस्ते मिल जाते है । इसीलिए हमेशा सकारात्मक सोच बनाके चलो ।

४. सुनो सबकी करो मन की।

अपने problem पे या situation पे काम करके भी अगर कुछ solution न मिले तोह दुसरो की सलाह लेना बहुत जरुरी है। family, friends या फिर office में काम करनेवाले आपके colleagues किसी को भी आप सुझाव मांग सकते हे। पर इसका यह मतलब नहीं की उन्होंने जो कहा वह बिना सोचे समझे करो। लोगो के opinions और सलाह सुनने के बाद वही करो जो आप को ठीक लगे। इसे आपको खुद पे confidence आएगा और आप आगे आने वाले मुश्किल situations के लिए किसी और को blame नहीं करोगे।

इसे आपको खुद पे confidence आएगा और आप आगे आने वाले मुश्किल situations के लिए किसी और को blame नहीं करोगे।

५. नतीजों के बारे में सोचना।

अक्सर हम अपने ज़िन्दगी में decisions तो ले लेते है पर बाद में उसके नतीजों से परेशान हो जाते है। इसीलिए कोई भी decision लेने से पहले यह बहुत important है की आप अपने decision के सारे impact और नतीजों के बारे में पहले ही सोच लो। यह सब प्लानिंग करने से आगे आने वाले problems के लिए आप तैयार रहते है।

६. Faith –

यह सब में सब से ज्यादा जो चीज़ मायने रखती है वह है खुद पे विश्वास रखना और डटे रहना। आपको खुद पर Faith रखना बहुत जरुरी है। problems आती रहेंगी पर आपको खुद पर भरोसा होना बहुत जरुरी है। मुश्किल हालात में Self confidence develop करना बहुत जरुरी है। Consistency के साथ अगर आप काम करोगे तोह मुश्किल से मुश्किल प्रॉब्लम भी आसानी से solve हो जाएगी।

7. सबसे महत्त्वपूर्ण मतलब – दृढ़ता रखो।

कभी – कभी समस्या बहोत जटील होती है। हमें ध्यैर्य से उसकी जाच करना जरुरी होता है। जिद्द हो तो यह करना कोई मुश्किल बात नही!

  • जैसा दुनिया को देखोगे वैसा ही पाओगे
  • सकारात्मक सोच का जादू
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  • सोच जो आपकी जिंदगी बदल सकती है!
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6 thoughts on “कोई भी मुशकिल १००% कैसे सुलझाएं | Problem solving techniques in Hindi”

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Thank u i diffinatly follow this skills.

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THATS GREAT U KNOW ITS LIKE A MOTIVATION TIP FOR US..

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Muzhe jo cheezh ki jarurat thi wo muzhe yaha mili so thanx

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Mujhe iski kafi jaroorat hai .

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bahut hi motivational gyaan hai is blog me jo humaare jeevan ko andhkaar se nikaal kar prakaash ki or marg prasast karta hai , i hope ki apke is blog ke sath humara ye rishta taumr bana rahega jeevan ke goodh rahshyon se humein awgat karata rahega dhanyawaad

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Pushpendra Dwivedi Ji,

Apaka bahut-bahut dhanyawad, aap jaise logon se hi hame or prerana milati hain achha kaam karane ke liye, aap hamase jude rahe and hamara facebook page bhi like kare.

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Problem Solving Method of Teaching in hindi

समस्या समाधान विधि (problem solving method).

समस्या समाधान विधि के प्रबल समर्थकों में किलपैट्रिक और जान ड्यूवी का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने पाठशाला कार्य को इस तरह से व्यवस्थित करने का प्रयास किया जिससे छात्र वास्तविक समस्या का अनुभव करें और मानसिक स्तर पर उसका हल ढूंढने के लिए प्रेरित हों। हमारे जीवन में पग-पग पर समस्याओं का आना स्वाभाविक है और हम इनका तर्क युक्त समाधान भी ढूंढने का प्रयास करते हैं। यदि हम तर्क के साथ किसी समस्या के समाधान की दिशा में प्रयास करते हैं तो निश्चित ही हम किसी न किसी लक्ष्य पर पहुँचते हैं और समस्या का समाधान कर लेते हैं। तर्क पूर्ण ढंग से समस्या की रुकावटों को हल करते हुए किसी लक्ष्य को प्राप्त कर लेना ही समस्या समाधान विधि के अन्तर्गत आता है।

Problem Solving Method of Teaching in hindi

(i) लेविन ने समस्या समाधान को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, "एक समस्यात्मक स्थिति, एक रचनाहीन या असंरचित जीवन स्थल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करती है।"

(ii) स्किनर के अनुसार, "समस्या समाधान किसी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा उपस्थित करने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की प्रक्रिया है। यह बाधाओं की स्थिति में सामंजस्य स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।”

(iii) जॉन ड्यूवी के मतानुसार, "समस्या हल करना तर्कपूर्ण चिन्तन के ताने बाने से बुना हुआ है। समस्या लक्ष्य का निर्धारण कर देती है और लक्ष्य ही चिन्तन प्रक्रिया को नियन्त्रित करता है।"

(iv) रिस्क के अनुसार, "समस्या समाधान किसी कठिनाई या जटिलता का एक सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया योजनाबद्ध कार्य है। इसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना या किसी विद्वान के विचारों की तर्क रहित स्वीकृति नहीं है बल्कि यह विचारशील चिन्तन प्रक्रिया है।"

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि जब कोई व्यक्ति ज्ञान तथ्यों के आधार पर उद्देश्यों अथवा लक्ष्यों से भटक जाता है तो उसमें तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है और यह तनाव तभी कम होता है जब इसका अन्त उस समस्या के समाधान के रूप में सामने आता है। लेविन की परिभाषा में जीवन स्थल शब्द का प्रयोग किया गया है। लेविन का जीवन स्थल से अभिप्राय व्यक्ति के चहुं ओर के वातावरण से है। इसी क्षेत्र में जब कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो व्यक्ति के सम्मुख समस्या उत्पन्न होती है और समस्या की कठिनाइयां उसे समस्या समाधान करने के लिए प्रेरित करती है। इस समाधान की स्थिति तक प्रयास करते हुए पहुँचना ही समस्या समाधान कहलाता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी समस्या समाधान विधि के माध्यम से छात्रों को शिक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। छात्रों को शिक्षण सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का तर्कपूर्ण चिन्तन कर स्वयं ही इन समस्याओं का हल ढूंढने के लिए प्रेरित किया जाता है और उनकी शिक्षण प्रक्रिया आगे बढ़ती है।

समस्या समाधान विधि के सोपान (Steps in Problem Solving)

समस्या समाधान विधि के निम्न सोपान हैं-

1. चिन्ता:- समस्या समाधान विधि का प्रथम सोपान चिन्ता है। इस सोपान में किसी परिस्थिति को छात्रों के सम्मुख इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि वे इसके प्रति कठिनाई महसूस करे और चिन्तित हो तथा उन्हें यह भी अहसास हो कि वह इस कठिनाई का हल किसी पूर्व निश्चित विधि के माध्यम से नहीं कर पायेगे। ऐसी स्थिति में वे इस समस्या या परिस्थिति को कठिनाइयों को हल करने के लिए प्रयास करेंगे। तर्कपूर्ण चिन्तन के लिए बाध्य होंगे।

2. परिभाषा:- समस्या समाधान विधि के इस दूसरे सोपान में समस्या से सम्बन्धित कठिनाई को परिभाषित किया जाता है और उसकी स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाती है। प्रत्येक समस्या से जुड़ी हुई कई छोटी-छोटी समस्यायें भी होती हैं। इन समस्याओं को भी छात्रों को विस्तारपूर्वक समझाया जाता है और फिर उनके निराकरण को विधि भी निर्धारित कर दी जाती है। यही समस्या समाधान विधि का दूसरा सोपान समाप्त होता है।

3. निराकरण प्रयास:- समस्या समाधान का तीसरा सोपान समस्या के निराकरण के लिये किये गये प्रयासों का सोपान है। इसमें समस्या से सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन प्रयोग व विचार विमर्श किया जाता है। उनका वर्गीकरण एवं विश्लेषण कर समस्या को सुलझाने का प्रयास किया जाता है। पूर्व निश्चित सिद्धान्तों का भी पुनः निरीक्षण किया जाता है। इस दौरान विभिन्न प्रकार के उपकरणों और यन्त्रों आदि का भी सहारा लेना होता है। यदि समस्या का आकार बहुत बड़ा होता है तो उसे छोटे-छोटे भागों में विभक्त कर समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।

4. अनुमान या उपकल्पना:- तीसरे सोपान में समस्या के समाधान से सम्बन्धित जिन तथ्यों को एकत्र किया जाता है इस सोपान में उनका विश्लेषण किया जाता है। इस क्रिया में कक्षा के सभी छात्र अपना-अपना सहयोग देते हैं। समस्या समाधान के बारे में एक उपकल्पना तैयार को जाती है और इस उपकल्पना को एकत्रित सभी प्रश्नों में से अधिकांश प्रश्नों की पुष्टि करती है। उसे ही अन्तिम स्वीकृति प्रदान कर दी जाती है और यह समझ लिया जाता है कि इसके माध्यम से ही समस्या का समाधान किया जाना सम्भव है। यही परिकल्पना कहलाती है। इसके पश्चात् इस उपकल्पना के माध्यम से समस्या का समाधान करने का प्रयास किया जाता है।

5. मूल्यांकन:- समस्या समाधान विधि के इस अन्तिम सोपान में निर्मित की गई उपकल्पना का पुनः प्रयोग करते हुए इसकी सत्यता को पुनः परखा जाता है। ऐसा करने के लिए इस उपकल्पना को अन्य सीखी हुई बातों के साथ सम्बन्धित किया जाता है और पूर्व अनुभवों के आधार पर इसकी सत्यता को आंका और जाँचा जाता है। इसके पश्चात् निर्णय की स्थिति आती है और समस्या का समाधान कर लिया जाता है।

ध्यान रहे कि इन पाँचों सोपानों में पहले चार सोपान आगमन विधि के है और पाँचवा और अन्तिम सौपान निगमन विधि का है। यह पाँचों पद एक दूसरे से पूरी तरह से गुथे हुए तथा सम्बन्धित होते हैं। इन्हें एक दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता।

समस्या समाधान विधि के प्रयोग में ध्यान देने योग्य बातें (Things to Note in Using Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि कक्षा शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली सरल और स्वाभाविक विधि है। कक्षा में इस विधि का प्रयोग करते समय अध्यापक को निम्नलिखित बातो पर ध्यान देना चाहिये-

  • तार्किक चिन्तन के लिये एक प्रेरक का होना आवश्यक है। क्योंकि बिना किसी प्रेरणा के छात्र समाधान के लिये प्रयास नहीं करेगा।
  • स्वस्थ संकल्पना (Sound concepts) के आधार के रूप में बालक बाह्य संचार की वस्तुओं का ताजा ज्ञान अवश्य रखे। इनके अभाव में इनका प्रतिनिधित्व करने वाले उदाहरणों को सामने रखना चाहिये।
  • इनके साथ-साथ बालक के शब्द-ज्ञान (भाषा-ज्ञान) का भी उत्तरोत्तर क्रमिक विकास होना चाहिये। चिन्तन के लिये भाषा एक आवश्यक तत्त्व है।
  • तार्किक चिन्तन का बीज तत्त्व समझ या बुद्धि तत्त्व है जो कि बहुत कुछ जन्मजात सामान्य योग्यताओं पर निर्भर करती है।
  • तार्किकता बहुत कुछ सम्बन्धित विषय-सामग्री के परिचय या जानकारी पर निर्भर करती है चाहे वह सूक्ष्म हो या स्थूल। इसलिये विशिष्ट विषय के लिये विशिष्ट प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिये। हम गणित या लैटिन में प्रशिक्षण देकर अर्थशास्त्र या सामाजिक समस्याओं के विषय में तर्क शक्ति का प्रशिक्षण नहीं दे सकते।
  • कुछ तर्कशास्त्र या वैज्ञानिक विधियों के सामान्य सिद्धान्तों की जानकारी अवश्य करा देना चाहिये और विभिन्न की समस्याओं के लिये उसका उपयोग कराना चाहिए।
  • मानवीय विचार का प्रत्येक विभाग अपना विशिष्ट चरित्र, भ्रांतियाँ एवं खतरा रखता है। गणित उच्चस्तरीय ज्ञान एवं प्रशिक्षण मनोविज्ञान और शिक्षा में तर्क की सफलता के लिये दावा नहीं कर सकता।
  • विभिन्न प्रकार के तथ्यों (facts) को ढूंढ निकालने के लिये विशेष या ज्ञान होना आवश्यक है।

समस्या समाधान विधि के गुण (Properties of Problem Solving Method)

समस्या समाधान विधि के प्रमुख गुण निम्न प्रकार हैं-

  • मनोवैज्ञानिक होने के साथ-साथ यह विधि पूर्ण रूप से वैज्ञानिक भी है। इस विधि में बालक वैज्ञानिक ढंग से ही ज्ञान को अर्जित करते हैं और शिक्षण सम्बन्धी सभी प्रक्रियायें वैज्ञानिक ढंग से सम्पन्न होती है।
  • समस्या समाधान विधि द्वारा छात्रों की अनेक क्षमताओं एवं योग्यताओं का विकास सम्भव होता है।
  • समस्या समाधान विधि छात्रों को क्रियायें करने के लिए प्रेरित करती है। समस्या स्वयं ही अपने आप में एक प्रेरक है। समस्या समाधान विधि छात्रों की समस्या का समाधान करने के लिए प्रेरित करती है।
  • इस विधि में छात्रों एवं शिक्षक के बीच अधिक सम्पर्क होने के कारण छात्र और शिक्षक के व्यवहार सौहार्दपूर्ण तथा सामंजस्यपूर्ण बनते हैं और शिक्षकों के निर्देशन को वह सहर्ष स्वीकार करते हैं।
  • समस्या समाधान विधि एक लचीली विधि है और इसका प्रयोग किसी भी शिक्षण परिस्थिति में सरलतापूर्वक किया जा सकता है।
  • समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक है।
  • समस्या समाधान विधि पूर्ण रूप से प्रजातान्त्रिक है। इसमें छात्र स्वयं अपनी समस्याओं का हल ढूँढने का प्रयास करते हैं। जिस प्रकार प्रजातन्त्र में मानव व्यक्तित्व के विकास पर विशेष बल दिया जाता है ठीक उसी प्रकार इस विधि में भी छात्रों के व्यक्तित्व को समस्या समाधान की दिशा में विशेष महत्व दिया गया है।
  • समस्याओं को हल करने के लिए छात्रों को समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्र करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं, तर्क वितर्क करना पड़ता है, चिन्तन करना पड़ता है जिससे छात्रों का मानसिक विकास सम्भव होता है।
  • समस्या समाधान विधि तर्क एवं आलोचना के द्वार खोलती है जिससे चालकों की मानसिक शक्तियों का विकास सम्भव होता है।
  • इस विधि द्वारा चूंकि बालकों को समस्या का समाधान अपने प्रयासों से स्वयं हो खोजना होता है अतः छात्र अधिक से अधिक प्रयास कर अध्ययन कर वार्तालाप के माध्यम से समस्या का समाधान करने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं जिससे उनमें परिश्रम की आदत का विकास होता है और रचनात्मक प्रवृत्ति विकसित होती है।

समस्या समाधान विधि के दोष (Defects of Problem Solving Method)

  • इस विधि से शिक्षण प्रक्रिया को चलाने के लिए अधिक समय की आवश्यकता होती है। धीमी गति के कारण निर्धारित पाठ्यक्रम वर्ष भर में पूरे नहीं हो पाते। जो ज्ञान शिक्षक परम्परागत शिक्षण विधियों से 1 वर्ष में दे पाते हैं वह इस विधि द्वारा दिया जाना सम्भव नहीं है।
  • इस विधि द्वारा छात्रों की सभी मानसिक एवं शारीरिक शक्तियों का विकास किया जाना सम्भव नहीं है। इसी कारण इस विधि को एकागी विधि स्वीकार किया गया है।
  • यह विधि छोटे बच्चों के शिक्षण के लिए बिल्कुल भी उपयोगी नहीं है। इस विधि में चूंकि तर्क पर विशेष बल दिया गया है और छोटे बच्चों द्वारा तर्क के माध्यम से अधिगम प्रक्रिया सम्भव नहीं है।
  • समस्या समाधान विधि अरुचिपूर्ण विधि है। इस विधि से शिक्षण की प्रक्रिया नीरस हो जाती है।
  • इस विधि से शिक्षण का संचालन करने के लिए योग्य शिक्षकों को बहुत आवश्यकता है। योग्य शिक्षकों के अभाव में यह विधि सफलतापूर्वक अपनायी नहीं जा सकती।

समस्या समाधान विधि में शिक्षक का स्थान (Teacher's Place in Problem Solving Method)

इस विधि के छात्र केन्द्रित होने के कारण और छात्रों के व्यक्तिगत कार्यों पर अधिक बल दिया गया है। इस कारण अक्सर यह भ्रान्ति हो जाती है कि इस विधि में शिक्षकों की कोई विशेष भूमिका नहीं है। किन्तु यह सोच बिल्कुल निरर्थक और सही नहीं है। वास्तव में शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया की वह महत्वपूर्ण कड़ी है जिसके अभाव में शिक्षण प्रक्रिया का समपन्न होना सम्भव नहीं है। इस विधि में भी शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान है। यह शिक्षक ही है जो समस्याओं को प्रभावपूर्ण ढंग से छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं और ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं जिनमें छात्र इस समस्या के समाधान के लिए प्रेरित हो तथा बाध्य हो। शिक्षक को हर कदम पर यह भी ध्यान रखना होता है कि छात्रों की रुचि इसमें बनी रहे। समस्या से सम्बन्धित सामग्री को एकत्रित करते समय भी छात्रों को शिक्षक के निर्देशन की आवश्यकता होती है।

शिक्षक के निर्देशन के अभाव में छात्र अनुपयुक्त सामग्री का संग्रह कर बैठते हैं जो किसी भी प्रकार से समस्या के समाधान में सहायक नहीं होती। छात्रों को अनुमानों के आधार पर शीघ्र ही निष्कर्षो पर पहुंचने से बचाना भी शिक्षक का ही दायित्व होता है। शिक्षक को इस बात का पूर्ण रूप से निरीक्षण करना होता है कि छात्र सही दिशा में कार्यरत हैं और यदि उनकी दिशा गलत है तो शिक्षक को छात्रों का मार्गदर्शन करना होता है। संक्षेप में कदम-कदम पर शिक्षक का निर्देशन छात्रों के लिए बहुत आवश्यक है। अतः कहा जा सकता है कि यह सोचना कि समस्या समाधान विधि में शिक्षक का कोई महत्व एवं भूमिका नहीं है एक गलत धारणा ही है।

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समस्या समाधान विधि | समस्या समाधान विधि की परिभाषाएँ | समस्या समाधान विधि के सिद्धान्त | समस्या समाधान विधि के गुण | समस्या समाधान विधि के दोष | समस्या समाधान विधि के सोपान | समस्या समाधान व प्रायोजना विधि में अन्तर

problem solving method in hindi

समस्या समाधान विधि | समस्या समाधान विधि की परिभाषाएँ | समस्या समाधान विधि के सिद्धान्त | समस्या समाधान विधि के गुण | समस्या समाधान विधि के दोष | समस्या समाधान विधि के सोपान | समस्या समाधान व प्रायोजना विधि में अन्तर | problem solving method in Hindi | Definitions of problem solving method in Hindi | Principles of Problem Solving Method in Hindi | Properties of problem solving method in Hindi | Defects of problem solving method in Hindi | Steps of Problem Solving Method in Hindi | Difference between problem solving and project method in Hindi

Table of Contents

समस्या समाधान विधि ( Problem Solving Method)

इस पृथ्वी पर जितने भी जीवधारी हैं उनमें सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य है। मनुष्य जन्म के कुछ समय बाद ही सामाजिक एवं पर्यावरणीय समायोजन की समस्या का अनुभव करने लगता है और वह इसमें किस प्रकार समायोजित हो इस हेतु समाधान के सम्बन्ध में चिन्तन करने लग जाता है। इन्हीं समस्याओं के परिणाम स्वरूप मनुष्य तनाव, द्वन्द्व, संघर्ष, विफलता, निराशा आदि का. शिकार हो जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति जीवन से मुख मोड़ने का भी प्रयास कर सकता है लेकिन इन सभी समस्याओं का समाधान एक आदर्श शिक्षक कर सकता है।

इस विधि के प्रवर्तक अमरीकी शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी को माना गया है। यह विधि बहुत ही प्राचीन है। इसका प्रयोग सुकरात एवं सेन्ट थॉमस ने भी किया, ऐसा शिक्षाविदों का मानना है। सुकरात ने आध्यात्मिक संवादों में इसका प्रयोग किया एवं सेन्ट थॉमस ने ‘Summa Theologica’ में इसका प्रयोग किया लेकिन वर्तमान समय के शिक्षाशास्त्रियों ने इसे शैक्षिक साधन के रूप में स्वीकार किया है।

समस्या समाधान विधि की परिभाषाएँ ( Definitions of Problem Solving Method)-

इस विधि के अर्थ को स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों ने इस विधि की अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  • रिस्क ( Risk) के अनुसार, “समस्या समाधान किसी कठिनाई अथवा जटिलता का एक पूर्ण सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के उद्देश्य से किया नियोजित कार्य है जिसमें मात्र तथ्यों का संग्रह करना अथवा किसी अधिकृत विद्वान के विचार की तर्क रहित स्वीकृति निहित नहीं है, वरन् यह एक विचारशील चिन्तन की प्रक्रिया है।”
  • सी.वी.गुड ( C.V. Good) के अनुसार, “समस्या पद्धति निर्देशन की वह विधि है जिसके द्वारा सीखने की प्रक्रिया को उन चुनौती पूर्ण परिस्थितियों की सृजना द्वारा प्रोत्साहित किया जाता है, जिनका समाधान करना आवश्यक है।”
  • योकम एवं सिम्पसन ( Yokam and Sympson) के अनुसार, “समस्या समाधान अथवा चिन्तन स्तर का शिक्षण एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जिसकी ओर सीखने सम्बन्धी सभी क्रियाएँ अग्रसर होती है तथा दी हुई समस्या का समाधान करती है।
  • वैसले एवं रानास्की ( Wesley and Ranasky)- के अनुसार, “समस्या एक ऐसी चुनौती है जिसका सामना करने के लिए अध्ययन तथा खोज की अवश्यकता पड़ती है।
  • जेम्स एम. ली ( James M. Lea)- “समस्या समाधान शैक्षिक प्रणाली है जिसके द्वारा शिक्षक किसी एक महत्वपूर्ण शैक्षिक कठिनाई के समाधान अथवा स्पष्टीकरण के लिए सचेत होकर एवं नियोजित ढंग से पूर्ण संलग्नता के साथ प्रयास करते है। समस्या समाधान एक विशेष शिक्षण प्रविधि की अपेक्षा एक सामान्य शिक्षा विधि है।

प्रो. त्यागी एवं सिंह ( Prof. Tyagi and Singh)- के अनुसार, जो बात तुच्छ अथवा सामान्य होने पर भी मस्तिष्क को इस प्रकार बेचैन कर और चुनौती दे कि विश्वास भी अनिश्चित बन जाये, उसमें वास्तविक समस्याएँ निहित हैं और ऐसी समस्या का समाधान स्वाभाविक परिस्थितियों में विद्यार्थियों द्वारा स्वयं अथवा शिक्षक के निर्देशन में खोजना ही समस्या समाधान विधि है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस विधि के द्वारा शिक्षक- शिक्षार्थी दोनों ही किसी समस्या का निदान नियोजित एवं सोद्देश्य प्रयास द्वारा खोजते हैं। इसमें किसी समस्या का विशेष परिस्थितियों में वैज्ञानिक ढंग से हल खोजने का प्रयास किया गया है।

समस्या समाधान विधि के सिद्धान्त ( Principles of Problem Solving Method) –

समस्या समाधान विधि के प्रमुख सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं-

(1) मनोवैज्ञानिक आधार का सिद्धान्त (Principles of psychological basic)

(2) ज्ञान की पूर्णता का सिद्धान्त (Principle of whole knowledge)

(3) क्रियाशीलता का सिद्धान्त (Principle of activity)

(4) वास्तविकता का सिद्धान्त (Principle of reality)

(5) सामाजिक आधार का सिद्धान्त (Principle of sociological basis)

समस्या समाधान विधि के गुण ( Merits of problem solving Method) :

समस्या समाधान विधि के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

(1) यह विधि उच्च कक्षाओं के छात्रों के लिए विशेष उपयोगी है।

(2) यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुकूल है।

(3) इस विधि में छात्र स्वाध्याय द्वारा ज्ञानर्जन करते हैं।

(4) इस विधि के द्वारा छात्र तथ्यों के संकलन एवं प्राप्त तथ्यों के विश्लेषण में सूक्ष्म हो जाते है।

(5) इस विधि के प्रयोग से छात्रों की मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं क्योंकि इसमें छात्रों को चिन्तन, तुलना, मूल्यांकन एवं निर्णय करने हेतु पर्याप्त अवसर प्राप्त होते हैं।

(6) इस विधि में छात्र किसी समस्या का समाधान परस्पर मिलकर करते हैं अत: सामाजिकता के गुण प्रेम, सौहार्द्र, सहयोग आदि विकसित होते हैं।

(7) छात्र भावी जीवन से सम्बन्धित समस्याओं का हल करना सीख लेते हैं।

(8) इस विधि के द्वारा छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित होता है।

(9) यह विधि छात्रों में मानसिक शक्तियों, चिन्तन, तर्क एवं कल्पना शक्ति विकसित करती है।

(10) इस विधि के द्वारा कथागत एवं व्यक्तिगत शिक्षण सम्भव है।

(11) यह विधि छात्रों में स्वावलम्बन, अविश्वास तथा आत्मनिर्भरता आदि गुण विकसित करती है।

समस्या समाधान विधि के दोष ( Demerits of Problem Solving Method)-

समस्या समाधान विधि के लाभ होने के साथ-साथ इसमें कुछ दोष भी परिलक्षित होते हैं जो हैं-

(1) यह विधि निम्नस्तर के छात्रों के लिए उपयोगी नहीं है क्योंकि इस स्तर पर छात्रों का विकास समस्याओं के समाधान हेतु पर्याप्त विकसित नहीं होता।

(2) समय अधिक लगाने के कारण यह विधि मितव्ययी नहीं है।

(3) इस विधि में छात्रों की रुचियों का कोई विशेष ध्यान नहीं रखा जाता है। अतः सामान्य छात्र इस विधि में ऊब महसूस करते हैं।

(4) कुशल शिक्षकों के अभाव में इस विधि की सफलता संदिग्ध प्रतीत होती है।

(5) इस विधि द्वारा सभी शिक्षण विषयों का शिक्षण सम्भव नहीं

(6) समस्या समाधान विधि के माध्यम से शिक्षण कराने से पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण नहीं होगा।

(7) इस विधि के द्वारा निरन्तर एवं क्रमिक अध्ययन किया जाना सम्भव नहीं है।

(8) समस्या अधिक कठिन होने पर छात्रों में निराशा के भाव उतपन्न हो जाते हैं।

समस्या समाधान विधि के सोपान ( Steps of Problem Solving Method) –

इस विधि के द्वारा शिक्षण हेतु निम्नलिखित सोपानों से गुजरना होता है-

  • समस्या की उत्पत्ति एवं चयन
  • समस्या का परिभाषीकरण
  • समस्या सम्बन्धी आवश्यक तथ्यों का संगठन
  • परिकल्पनाओं की निर्माण एवं जाँच
  • तथ्यों का संकलन एवं विश्लेषण
  • विश्लेषण कर निष्कर्ष निकालना
  • निष्कर्षों की सत्यता का मूल्यांकन

समस्या समाधान व प्रायोजना विधि में अन्तर ( Difference between Problem solving and Project Method) :

इन दोनों विधियों में निम्नलिखित अन्तर देखने में आते हैं-

(1) इस विधि में बालक मानसिक स्तर पर समस्याओं का समाधान खोजता है। जबकि प्रायोजन विधि में मानसिक व शारीरकि क्रियाओं पर बल दिया जाता है।

(2) इस विधि में मौलिक तथा सृजनात्मक चिन्तन को प्रधानता दी जाती है। जब कि प्रायोजना विधि में विषयवस्तु की जानकारी एवं उसका बोध कराया जाता है।

(3) इस विधि में आलोचनात्मक व सृजनात्मक चिन्तन को अधिक महत्व दिया जाता है। जबकि प्रायोजना विधि में ज्ञानेन्द्रियों के प्रशिक्षण को

(4) इस विधि मनोवज्ञान की आधुनिक विचारधारा पर आधारित है जबकि प्रायोजना विधि प्रयोजनवादी विचारधारा पर आधारित है।

(5) इस विधि में परिणाम समस्या के लिए समाधान के निष्कर्ष के रूप में होता है जबकि प्रायोजना विधि का परिणाम उत्पादन के रूप में होता है।

(6) इस विधि में सीखे हुए ज्ञान के आधार पर वह उस क्षेत्र की मौलिक समस्याओं का अध्ययन करके अपने मौलिक विचार दे सकते हैं जबकि प्रायोजना विधि में जीवन से हीसम्बन्धित समस्या के समाधान के द्वारा विषयों का ज्ञान प्रदान किया जाता है।

उपरोक्त असमानताओं अथवा अन्तर होते हुए भी दोनों में कुछ समानताएँ भी हैं जैसे- बालक के जीवन से जुड़ी हुई समस्याएँ समाधान हेतु ली जाती है, दोनों समस्या केन्द्रित विधि है, दोनों छात्र केन्द्रित विधि हैं आदि।

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Problem Solving Method In Social Science In Hindi (Pdf)

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आज हम  Problem Solving Method In Social Science In Hindi (Pdf), समस्या समाधान विधि आदि के बारे में जानेंगे। इन नोट्स के माध्यम से आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और आप अपनी आगामी परीक्षा को पास कर सकते है | Notes के अंत में PDF Download का बटन है | तो चलिए जानते है इसके बारे में विस्तार से |

  • सामाजिक विज्ञान एक विविध और गतिशील क्षेत्र है जो मानव समाज, संस्कृति और व्यवहार की जटिलताओं का गहराई से अध्ययन करता है। इसमें समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान और बहुत कुछ जैसे विषय शामिल हैं।
  • जबकि पाठ्यपुस्तकें और व्याख्यान सामाजिक विज्ञान शिक्षा के आवश्यक घटक हैं, समस्या समाधान पद्धति छात्रों को आलोचनात्मक सोच, विश्लेषणात्मक कौशल और जटिल सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ में संलग्न करने के लिए एक शक्तिशाली और परिवर्तनकारी दृष्टिकोण के रूप में उभरी है।

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समस्या समाधान विधि क्या है?

(what is the problem solving method).

समस्या-समाधान पद्धति एक शैक्षिक दृष्टिकोण है जो छात्रों को उनके पूर्व अनुभवों, वर्तमान प्रयासों और महत्वपूर्ण सोच कौशल के आधार पर जटिल समस्याओं से निपटने के लिए सशक्त बनाती है। इस पद्धति का उद्देश्य चुनौतीपूर्ण समस्याओं का इष्टतम समाधान खोजने की क्षमता विकसित करना और भविष्य में इसी तरह की समस्याओं को हल करने के लिए इन समाधानों को लागू करना है। समस्या-समाधान एक मूल्यवान कौशल है जो अकादमिक विषयों से परे है और जीवन के विभिन्न संदर्भों में लागू होता है।

समस्या समाधान विधि के प्रमुख तत्व (Key Elements of Problem Solving Method):

  • चुनौतीपूर्ण समस्याएँ (Challenging Problems): समस्या-समाधान पद्धति में, छात्रों को वास्तविक या नकली जटिल समस्याएं प्रस्तुत की जाती हैं जिनके लिए विचारशील विश्लेषण और रचनात्मक सोच की आवश्यकता होती है। इन समस्याओं में अक्सर सीधे समाधानों का अभाव होता है और इसमें कई चर या दृष्टिकोण शामिल हो सकते हैं। उदाहरण: गणित में, छात्रों को एक जटिल शब्द समस्या को हल करने का काम सौंपा जा सकता है जिसमें कई समीकरण और चर शामिल होते हैं।
  • पिछले अनुभवों का उपयोग (Utilizing Past Experiences): छात्रों को समस्या से निपटने के लिए अपने पूर्व ज्ञान और अनुभवों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसमें पिछली सीख से प्रासंगिक अवधारणाओं, रणनीतियों या समाधानों को याद करना शामिल हो सकता है। उदाहरण: इतिहास की कक्षा में, छात्र वर्तमान सामाजिक मुद्दों का विश्लेषण और समाधान प्रस्तावित करने के लिए अतीत की घटनाओं के बारे में अपने ज्ञान का उपयोग कर सकते हैं।
  • आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking): समस्या-समाधान पद्धति महत्वपूर्ण सोच कौशल को बढ़ावा देती है, जिसमें जानकारी का विश्लेषण करने, विकल्पों का मूल्यांकन करने और सूचित निर्णय लेने की क्षमता शामिल है। छात्रों को मौजूदा समस्या के बारे में गहराई से और गंभीरता से सोचने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उदाहरण: विज्ञान कक्षा में, छात्र पैटर्न की पहचान करने और निष्कर्ष निकालने के लिए किसी प्रयोग से प्राप्त डेटा का विश्लेषण कर सकते हैं।
  • समाधानों का अनुप्रयोग (Application of Solutions): एक बार समाधान की पहचान हो जाने के बाद, छात्रों को समस्या को हल करने के लिए इसे प्रभावी ढंग से लागू करना सिखाया जाता है। यह कदम छात्रों को उनके समस्या-समाधान कौशल का व्यावहारिक मूल्य देखने में मदद करता है। उदाहरण: एक इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में, छात्र किसी विशिष्ट इंजीनियरिंग चुनौती के लिए अपने समस्या-समाधान दृष्टिकोण के आधार पर एक प्रोटोटाइप डिजाइन और निर्माण कर सकते हैं।
  • स्थानांतरणीयता (Transferability): समस्या-समाधान पद्धति का एक अनिवार्य पहलू विभिन्न संदर्भों में समान समस्याओं से निपटने के लिए अर्जित समस्या-समाधान कौशल को लागू करने की क्षमता है। कौशल की यह हस्तांतरणीयता इस पद्धति का एक मौलिक लक्ष्य है। उदाहरण: भौतिकी में समस्या-समाधान तकनीक सीखने के बाद, छात्र उन्हें रसायन विज्ञान या जीव विज्ञान जैसे अन्य विज्ञान विषयों में समस्याओं को हल करने के लिए लागू कर सकते हैं।

सामाजिक विज्ञान में समस्या समाधान विधि

(problem solving method in social science).

सामाजिक विज्ञान शिक्षा के संदर्भ में, समस्या-समाधान पद्धति एक विशिष्ट अनुप्रयोग पर आधारित है। यहां बताया गया है कि सामाजिक विज्ञान में समस्या-समाधान कैसे लागू किया जाता है:

  • जटिल सामाजिक मुद्दे (Complex Societal Issues): सामाजिक विज्ञान की कक्षाएं अक्सर छात्रों को गरीबी, भेदभाव, या राजनीतिक संघर्ष जैसे जटिल सामाजिक मुद्दों को हल करने वाली समस्याओं के रूप में प्रस्तुत करती हैं। इन समस्याओं का समाधान सरल नहीं है और इसके लिए सामाजिक गतिशीलता की सूक्ष्म समझ की आवश्यकता होती है। उदाहरण: छात्रों को एक विशिष्ट समुदाय के भीतर आय असमानता को दूर करने के लिए समाधान खोजने का काम सौंपा जा सकता है।
  • अनुसंधान और विश्लेषण (Research and Analysis): छात्रों को समस्या को बेहतर ढंग से समझने के लिए अनुसंधान करने, डेटा इकट्ठा करने और जानकारी का गंभीर विश्लेषण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसमें ऐतिहासिक संदर्भ, सामाजिक कारक और संभावित कारणों और परिणामों की जांच शामिल है। उदाहरण: समाजशास्त्र कक्षा में, छात्र किसी विशेष सामाजिक मुद्दे में योगदान देने वाले कारकों पर शोध कर सकते हैं, जैसे युवा बेरोजगारी के कारण।
  • नीति और वकालत (Policy and Advocacy): सामाजिक विज्ञान में समस्या-समाधान पद्धति अक्सर नीति सिफारिशों या वकालत प्रयासों के विकास तक फैली हुई है। छात्रों को ऐसे व्यावहारिक समाधान प्रस्तावित करने की चुनौती दी जाती है जो सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन ला सकें। उदाहरण: छात्र अपने स्थानीय समुदाय में पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने, टिकाऊ प्रथाओं की वकालत करने के लिए एक नीति प्रस्ताव बना सकते हैं।
  • अंतःविषय परिप्रेक्ष्य (Interdisciplinary Perspective): सामाजिक विज्ञान की समस्याएं अक्सर अंतःविषय दृष्टिकोण से लाभान्वित होती हैं। व्यापक समाधान तैयार करने के लिए छात्रों को समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान जैसे विभिन्न सामाजिक विज्ञान विषयों से अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। उदाहरण: मादक द्रव्यों के सेवन जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे को संबोधित करने के लिए प्रभावी रोकथाम और हस्तक्षेप रणनीति बनाने के लिए मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र से अंतर्दृष्टि की आवश्यकता हो सकती है।
  • वैश्विक और स्थानीय परिप्रेक्ष्य (Global and Local Perspectives): सामाजिक विज्ञान में समस्या-समाधान वैश्विक और स्थानीय दोनों संदर्भों पर विचार करता है। छात्र यह आकलन करना सीखते हैं कि एक समस्या विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों में अलग-अलग तरीके से कैसे प्रकट हो सकती है, और वे सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील समाधान तलाशते हैं। उदाहरण: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन करने वाले छात्र किसी राजनीतिक संघर्ष के वैश्विक प्रभाव का विश्लेषण करते हुए इसके स्थानीय प्रभावों पर भी विचार कर सकते हैं।

संक्षेप में, सामाजिक विज्ञान शिक्षा में समस्या-समाधान छात्रों को जटिल सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने, सूचित नागरिकता को बढ़ावा देने और दुनिया में सकारात्मक योगदान देने की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण सोच कौशल और ज्ञान से लैस करता है।

Problem-Solving-Method-In-Social-Science-In-Hindi

समस्या समाधान विधि के लक्षण

(characteristics of problem solving method).

समस्या-समाधान विधि एक शैक्षणिक दृष्टिकोण है जो जटिल मुद्दों से निपटने में छात्रों की सक्रिय भागीदारी को प्राथमिकता देता है। यह आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और स्वतंत्र समस्या-समाधान कौशल को प्रोत्साहित करता है। इस पद्धति की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • शिक्षण-अधिगम की प्राथमिक विधि (Primary Method of Teaching-Learning): समस्या-समाधान पद्धति शिक्षण और सीखने के लिए एक केंद्रीय और मौलिक दृष्टिकोण है। यह समस्या-समाधान को शैक्षिक प्रक्रिया के मूल में रखता है, विषय वस्तु की गहरी समझ को बढ़ावा देने में इसके महत्व पर जोर देता है। उदाहरण: एक विज्ञान कक्षा में, छात्रों को जांच करने और हल करने के लिए एक चुनौतीपूर्ण वैज्ञानिक प्रश्न दिया जाता है, जिससे समस्या-समाधान को सीखने का प्राथमिक तरीका बना दिया जाता है।
  • समस्या-केंद्रित शिक्षा (Problem-Centered Learning): यह विधि एक विशिष्ट समस्या या प्रश्न के इर्द-गिर्द घूमती है, जो शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया के केंद्र बिंदु के रूप में कार्य करती है। इस समस्या को छात्रों की रुचियों, क्षमताओं और शैक्षिक आवश्यकताओं के अनुरूप सावधानीपूर्वक चुना गया है। उदाहरण: एक साहित्य कक्षा में, छात्र एक जटिल साहित्यिक कार्य को केंद्रीय समस्या के रूप में विश्लेषित कर सकते हैं, उसके विषयों, पात्रों और प्रतीकवाद की खोज कर सकते हैं।
  • छात्र-केन्द्रित दृष्टिकोण (Student-Centric Approach): समस्या समाधान पद्धति में छात्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे समस्या के चयन, योजना बनाने और समाधान खोजने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। यह दृष्टिकोण छात्रों को अपनी सीखने की प्रक्रिया का स्वामित्व लेने का अधिकार देता है। उदाहरण: इतिहास की कक्षा में, छात्र सामूहिक रूप से यह निर्णय ले सकते हैं कि वे किस ऐतिहासिक घटना या आकृति का गहराई से अध्ययन और विश्लेषण करना चाहते हैं।
  • स्वतंत्र समस्या समाधान (Independent Problem Solving): छात्रों को अपने प्रयासों से चुनी हुई समस्या को हल करने की स्वायत्तता दी जाती है। शिक्षक सुविधाप्रदाता के रूप में कार्य करते हैं, जरूरत पड़ने पर मार्गदर्शन और सहायता प्रदान करते हैं लेकिन छात्रों को स्वतंत्र रूप से समाधान तलाशने की अनुमति देते हैं। उदाहरण: गणित की कक्षा में, छात्रों को जटिल गणितीय समीकरणों पर चरण दर चरण काम करने और अपने समस्या-समाधान कौशल के माध्यम से समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  • चुनौतीपूर्ण समस्याएँ (Challenging Problems): इस पद्धति के लिए चुनी गई समस्याएँ जानबूझकर चुनौतीपूर्ण हैं। उन्हें छात्रों से गंभीर रूप से सोचने, ज्ञान को लागू करने और समाधान पर पहुंचने के लिए विभिन्न तरीकों का पता लगाने की आवश्यकता होती है। उदाहरण: कंप्यूटर प्रोग्रामिंग पाठ्यक्रम में, छात्रों को एक जटिल सॉफ्टवेयर प्रोग्राम लिखने का काम सौंपा जा सकता है जो वास्तविक दुनिया की समस्या का समाधान करता है।
  • सहयोगात्मक शिक्षा (Collaborative Learning): छात्र अपने दृष्टिकोण, अंतर्दृष्टि और रणनीतियों को साझा करते हुए समस्या को हल करने के लिए सहयोगात्मक रूप से काम करते हैं। सहयोगात्मक शिक्षा संचार और टीम वर्क कौशल को बढ़ाती है। उदाहरण: Business Class में एक समूह परियोजना में, छात्र एक विशिष्ट बाजार चुनौती का समाधान करने के लिए एक बिजनेस योजना विकसित करने के लिए सहयोग करते हैं।
  • अधिकतम शैक्षिक लाभ (Maximum Educational Benefit): चुनी गई समस्याएं छात्रों को अधिकतम शैक्षिक लाभ प्रदान करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। इन्हें गहन शिक्षण, आलोचनात्मक सोच और कौशल विकास की सुविधा के लिए सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है। उदाहरण: पर्यावरण विज्ञान कक्षा में, छात्र स्थानीय पर्यावरणीय मुद्दे के समाधान की जांच कर सकते हैं, व्यावहारिक ज्ञान और कौशल प्राप्त कर सकते हैं जिन्हें वास्तविक दुनिया की स्थितियों में लागू किया जा सकता है।

संक्षेप में, समस्या समाधान पद्धति शिक्षा के लिए एक छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण है जो चुनौतीपूर्ण समस्याओं के इर्द-गिर्द घूमती है। यह सक्रिय जुड़ाव, आलोचनात्मक सोच और सहयोग को प्रोत्साहित करता है, ये सभी विभिन्न संदर्भों में आजीवन सीखने और समस्या-समाधान के लिए आवश्यक कौशल हैं। यह विधि सुनिश्चित करती है कि छात्र जटिल मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटने की क्षमता विकसित करते हुए मूल्यवान शैक्षिक अनुभव प्राप्त करें।

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सामाजिक विज्ञान में समस्या समाधान से संबंधित क्षेत्र

(area related to problem solving in social science).

सामाजिक विज्ञान में समस्या-समाधान में आलोचनात्मक सोच, अनुसंधान और विश्लेषण को लागू करके जटिल सामाजिक मुद्दों को संबोधित करना शामिल है। यह एक शैक्षिक दृष्टिकोण है जो छात्रों को गंभीर सामाजिक समस्याओं को समझने, उनका आकलन करने और उनके समाधान प्रस्तावित करने का अधिकार देता है। यहां, हम सामाजिक विज्ञान में समस्या-समाधान से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों पर चर्चा करेंगे, इसके बाद प्रत्येक क्षेत्र को स्पष्ट करने के लिए उदाहरण देंगे।

  • Pollution Problem (प्रदुषण की समस्या): “प्रदूषण समस्या” में पर्यावरण प्रदूषण से संबंधित मुद्दे शामिल हैं, जैसे वायु, जल और मिट्टी प्रदूषण। इसमें स्रोतों की पहचान करना, पारिस्थितिक तंत्र और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव को समझना और प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम के लिए रणनीति तैयार करना शामिल है। उदाहरण: छात्र स्थानीय नदी में जल प्रदूषण के कारणों का विश्लेषण कर सकते हैं, जलीय जीवन और मानव स्वास्थ्य पर इसके प्रभावों का अध्ययन कर सकते हैं, और सख्त औद्योगिक नियमों या सामुदायिक सफाई पहल जैसे उपायों का प्रस्ताव कर सकते हैं।
  • Problem of Provincialism (प्रांतवाद की समस्या): “प्रांतीयता की समस्या” क्षेत्रवाद या पूरे देश में किसी के अपने प्रांत या क्षेत्र के प्रति अत्यधिक लगाव से संबंधित है। यह अक्सर विभाजनकारी रवैये को जन्म देता है और राष्ट्रीय एकता को कमजोर कर सकता है। उदाहरण: सामाजिक अध्ययन कक्षा में, छात्र यह पता लगा सकते हैं कि प्रांतवाद राष्ट्रीय पहचान को कैसे प्रभावित करता है और एकता की भावना को बढ़ावा देने के तरीके सुझाता है, जैसे कि अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान या राष्ट्रीय कार्यक्रम।
  • Natural Disasters (प्राकृतिक आपदाएँ): इस क्षेत्र में तूफान, भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन शामिल है। छात्र सरकारी नीतियों और सामुदायिक लचीलेपन सहित आपदा तैयारियों, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति प्रयासों की जांच करते हैं। उदाहरण: छात्र हाल के तूफान के दौरान आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाओं की प्रभावशीलता की जांच कर सकते हैं, संघीय और स्थानीय एजेंसियों की भूमिका का विश्लेषण कर सकते हैं और भविष्य के आपदा प्रबंधन के लिए सुधार का प्रस्ताव दे सकते हैं।
  • Problem of Terrorism (आतंकवाद की समस्या): “आतंकवाद की समस्या” मूल कारणों, वैश्विक प्रभावों और आतंकवाद विरोधी उपायों को समझने पर केंद्रित है। यह छात्रों को आतंकवाद की जटिलताओं और उससे निपटने की चुनौतियों का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है। उदाहरण: राजनीति विज्ञान की कक्षा में, छात्र हाल के आतंकवादी हमले के पीछे के उद्देश्यों पर शोध कर सकते हैं, इसके अंतर्राष्ट्रीय नतीजों का आकलन कर सकते हैं और मुद्दे के समाधान के लिए राजनयिक रणनीतियों का प्रस्ताव कर सकते हैं।
  • Problem of World Peace (विश्व शांति की समस्या): विश्व शांति एक वैश्विक मुद्दा है जिसमें कूटनीति, अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष और शांति स्थापना प्रयास शामिल हैं। छात्र ऐतिहासिक संघर्षों, शांति संधियों और शांति को बढ़ावा देने वाले वैश्विक संगठनों का विश्लेषण करते हैं। उदाहरण: छात्र इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष जैसे लंबे समय से चले आ रहे अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का अध्ययन कर सकते हैं, पिछली शांति पहलों का विश्लेषण कर सकते हैं और शांतिपूर्ण वार्ता को बढ़ावा देने के लिए रणनीतियों का प्रस्ताव कर सकते हैं।
  • Problem of Forest Conservation (वन संरक्षण की समस्या): यह क्षेत्र वनों और जैव विविधता के संरक्षण पर केंद्रित है। छात्र वन पारिस्थितिकी प्रणालियों के खतरों का पता लगाते हैं और वनों की कटाई और आवास हानि से निपटने के लिए समाधान विकसित करते हैं। उदाहरण: पर्यावरण विज्ञान कक्षा में, छात्र स्थानीय जंगलों पर अवैध कटाई के प्रभाव की जांच कर सकते हैं, टिकाऊ वानिकी प्रथाओं पर शोध कर सकते हैं और सख्त प्रवर्तन के लिए नीतियों का प्रस्ताव कर सकते हैं।
  • Problem of Democracy (लोकतंत्र की समस्या): “लोकतंत्र की समस्या” में लोकतांत्रिक प्रणालियों की ताकत और कमजोरियों की जांच करना शामिल है, जिसमें मतदाता दमन, राजनीतिक ध्रुवीकरण और अभियान वित्त जैसे मुद्दे शामिल हैं। उदाहरण: छात्र मतदाता दमन की हालिया घटनाओं की जांच कर सकते हैं, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर उनके प्रभाव का आकलन कर सकते हैं और समावेशिता बढ़ाने के लिए चुनावी सुधारों का प्रस्ताव कर सकते हैं।
  • Problem of Poverty (गरीबी की समस्या): गरीबी से निपटने के लिए इसके कारणों, परिणामों और संभावित समाधानों को समझने की आवश्यकता है। छात्र गरीबी के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं का विश्लेषण करते हैं और गरीबी उन्मूलन के लिए नीतियों का प्रस्ताव करते हैं। उदाहरण: समाजशास्त्र या अर्थशास्त्र कक्षा में, छात्र आय असमानता के प्रभावों पर शोध कर सकते हैं, सामाजिक सुरक्षा जाल की प्रभावकारिता का मूल्यांकन कर सकते हैं और नौकरी प्रशिक्षण कार्यक्रमों जैसे उपायों की सिफारिश कर सकते हैं।
  • Problem of Unemployment (बेरोजगारी की समस्या): बेरोजगारी के मुद्दों में स्वचालन और आर्थिक उतार-चढ़ाव जैसे कारणों की खोज शामिल है। छात्र रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने और रोजगार के अवसरों में सुधार के लिए रणनीतियों का प्रस्ताव करते हैं। उदाहरण: छात्र स्थानीय उद्योगों पर स्वचालन के प्रभाव की जांच कर सकते हैं, सफल रोजगार सृजन पहल का अध्ययन कर सकते हैं और प्रभावित श्रमिकों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम सुझा सकते हैं।

ये उदाहरण दिखाते हैं कि:-

  • कैसे सामाजिक विज्ञान में समस्या-समाधान छात्रों को वास्तविक दुनिया के मुद्दों से जुड़ने में मदद कर सकता है, गंभीर सामाजिक चुनौतियों के लिए व्यावहारिक समाधान विकसित करते हुए महत्वपूर्ण सोच और सूचित नागरिकता को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • सामाजिक विज्ञान कक्षाओं में समस्या-समाधान गतिविधियों में इन क्षेत्रों को शामिल करने से न केवल समाज के सामने आने वाले जटिल मुद्दों के बारे में छात्रों की समझ बढ़ती है, बल्कि उन्हें महत्वपूर्ण सोच, अनुसंधान और सहयोग में मूल्यवान कौशल भी मिलते हैं। ये समस्या-समाधान अभ्यास छात्रों को सूचित और सक्रिय नागरिक बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जो अपने समुदायों और उससे परे इन गंभीर सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने में योगदान दे सकते हैं।

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समस्या समाधान विधि के चरण/ सोपान

(steps of problem solving method).

समस्या-समाधान एक व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसमें चुनौतीपूर्ण मुद्दों के प्रभावी समाधान खोजने के लिए कई कदम शामिल होते हैं। ये कदम व्यक्तियों या समूहों को समस्या-समाधान यात्रा के माध्यम से मार्गदर्शन करते हैं। यहां, हम प्रत्येक चरण को विस्तार से समझाएंगे और उनके अनुप्रयोग को स्पष्ट करने के लिए उदाहरण प्रदान करेंगे।

1. समस्या का चयन (Selection of the Problem):

  • स्पष्टीकरण: समस्या-समाधान की प्रक्रिया समस्या की पहचान और उसे परिभाषित करने से शुरू होती है। इस चरण में यह पहचानना शामिल है कि एक समस्या मौजूद है और इसकी प्रकृति, दायरे और महत्व को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना है।
  • उदाहरण: व्यावसायिक संदर्भ में, कोई कंपनी बिक्री राजस्व में गिरावट को एक समस्या के रूप में पहचान सकती है, जो यह जांचने की आवश्यकता का संकेत देती है कि बिक्री क्यों कम हो रही है।

2. समस्या को समझना (Understanding the Problem):

  • स्पष्टीकरण: एक बार समस्या परिभाषित हो जाने के बाद, इसके अंतर्निहित कारकों और संदर्भ की गहरी समझ हासिल करना महत्वपूर्ण है। इस चरण में प्रश्न पूछना, शोध करना और समस्या के कारणों और प्रभावों को समझना शामिल है।
  • उदाहरण: घटती बिक्री के मुद्दे को समझने के लिए, कंपनी यह निर्धारित करने के लिए बिक्री डेटा, ग्राहक प्रतिक्रिया और बाजार के रुझान का विश्लेषण कर सकती है कि क्या बाहरी कारक या आंतरिक प्रक्रियाएं समस्या में योगदान दे रही हैं।

3. प्रासंगिक जानकारी का संग्रह (Collection of Relevant Information):

  • स्पष्टीकरण: सूचित निर्णय लेने के लिए प्रासंगिक डेटा और जानकारी एकत्र करना महत्वपूर्ण है। इस चरण में समस्या से संबंधित डेटा, तथ्य और साक्ष्य एकत्र करना शामिल है।
  • उदाहरण: स्वास्थ्य देखभाल में, यदि किसी अस्पताल में मरीज़ों के दोबारा भर्ती होने की दर औसत से अधिक है, तो वे कारणों को इंगित करने के लिए मरीज़ की जनसांख्यिकी, चिकित्सा स्थितियों और छुट्टी के बाद की देखभाल पर डेटा एकत्र करेंगे।

4. एकत्रित सूचना का विश्लेषण (Analysis of the Collected Information):

  • स्पष्टीकरण: डेटा एकत्र करने के बाद उसका विश्लेषण और व्याख्या करना महत्वपूर्ण है। इस चरण में समस्या के पैटर्न, सहसंबंध और संभावित मूल कारणों की पहचान करना शामिल है।
  • उदाहरण: रोगी के पुन: प्रवेश डेटा का विश्लेषण करते समय, अस्पताल को पता चल सकता है कि अनुवर्ती नियुक्तियों और दवा के पालन की कमी समस्या में योगदान दे रही है।

5. अस्थायी समाधान तैयार करना (Formulation of Tentative Solution):

  • स्पष्टीकरण: विश्लेषण के आधार पर, आप समस्या के समाधान के लिए संभावित समाधान या रणनीति तैयार करना शुरू कर सकते हैं। ये समाधान प्रारंभिक हैं और समस्या-समाधान प्रक्रिया जारी रहने पर विकसित हो सकते हैं।
  • उदाहरण: मरीज की पुनः भर्ती समस्या का समाधान करने के लिए, अस्पताल एक व्यापक पोस्ट-डिस्चार्ज देखभाल योजना लागू करने पर विचार कर सकता है जिसमें अनुवर्ती नियुक्तियाँ, दवा अनुस्मारक और रोगी शिक्षा शामिल है।

6. सबसे उचित समाधान का चयन (Selection of the Most Proper Solution):

  • स्पष्टीकरण: इस चरण में अस्थायी समाधानों का मूल्यांकन करना और उस समाधान का चयन करना शामिल है जिसके प्रभावी होने की सबसे अधिक संभावना है। इस निर्णय में व्यवहार्यता, लागत-प्रभावशीलता और संभावित प्रभाव जैसे कारकों पर विचार किया जाता है।
  • उदाहरण: अस्पताल उपलब्ध संसाधनों और अपेक्षित लाभों के आधार पर, पूरे अस्पताल में इसे शुरू करने से पहले एक विभाग में डिस्चार्ज के बाद देखभाल योजना के लिए एक पायलट कार्यक्रम लागू करने का निर्णय ले सकता है।

7. स्वीकृत समाधान का अनुप्रयोग (Application of the Accepted Solution):

  • स्पष्टीकरण: अंतिम चरण चयनित समाधान को क्रियान्वित करना है। इसमें समाधान को लागू करना, उसकी प्रगति की निगरानी करना और आवश्यकतानुसार समायोजन करना शामिल है।
  • उदाहरण: अस्पताल डिस्चार्ज के बाद देखभाल के लिए पायलट कार्यक्रम शुरू करता है, रोगी के परिणामों को ट्रैक करता है, और फीडबैक और परिणामों के आधार पर कार्यक्रम को लगातार परिष्कृत करता है।

संक्षेप में, समस्या समाधान पद्धति के चरण जटिल मुद्दों के समाधान के लिए एक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। ये कदम व्यक्तियों या संगठनों को सूचित निर्णय लेने और कार्रवाई करके समस्याओं को व्यवस्थित रूप से पहचानने, समझने, विश्लेषण करने और हल करने में मदद करते हैं। व्यवसाय और स्वास्थ्य सेवा से लेकर शिक्षा और रोजमर्रा की जिंदगी तक, विभिन्न क्षेत्रों और संदर्भों में समस्या-समाधान एक आवश्यक कौशल है।

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Advantages of Problem-Solving Method

(समस्या-समाधान पद्धति के लाभ / समस्या समाधान की उपयोगिता / महत्त्व).

समस्या-समाधान विधि एक प्रभावी शैक्षिक दृष्टिकोण है जो छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए कई लाभ प्रदान करता है। यहां, हम “मनोवैज्ञानिक पद्धति” की श्रेणी के अंतर्गत लाभों पर चर्चा करेंगे और प्रत्येक बिंदु को स्पष्ट करने के लिए उदाहरण प्रदान करेंगे।

1. मानसिक शक्तियों का विकास (Development of Mental Powers):

  • स्पष्टीकरण: समस्या समाधान विधि छात्रों को गंभीर रूप से सोचने, जानकारी का विश्लेषण करने और रचनात्मक सोच में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित करती है। यह प्रक्रिया विश्लेषणात्मक सोच, तर्क और तर्क सहित उनकी संज्ञानात्मक क्षमताओं को मजबूत करती है।
  • उदाहरण: गणित की कक्षा में, जटिल समस्या-समाधान कार्यों पर काम करने वाले छात्र अपनी मानसिक शक्तियों का विकास करते हैं क्योंकि वे समाधान तक पहुंचने के लिए रणनीति बनाते हैं और गणितीय अवधारणाओं को लागू करते हैं।

2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of Scientific Attitude):

  • स्पष्टीकरण: समस्या-समाधान वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, जिज्ञासा, पूछताछ और साक्ष्य-आधारित तर्क पर जोर देता है। छात्र समस्याओं से व्यवस्थित तरीके से निपटना, साक्ष्य तलाशना और विभिन्न दृष्टिकोणों की खोज करना सीखते हैं।
  • उदाहरण: एक विज्ञान कक्षा में, वैज्ञानिक पूछताछ को हल करने के लिए प्रयोग करने वाले छात्र वैज्ञानिक पद्धति का पालन करके और अनुभवजन्य साक्ष्य पर भरोसा करके वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करते हैं।

3. समस्या-समाधान क्षमता का विकास (Development of Problem-Solving Ability):

  • स्पष्टीकरण: इस पद्धति का मुख्य उद्देश्य छात्रों की समस्या-समाधान कौशल को बढ़ाना है। समस्या-समाधान में नियमित अभ्यास उन्हें वास्तविक जीवन की चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने की क्षमता प्रदान करता है।
  • उदाहरण: इतिहास की कक्षा में, ऐतिहासिक घटनाओं और उनके निहितार्थों का विश्लेषण करने से छात्रों को समस्या-समाधान कौशल विकसित करने में मदद मिलती है क्योंकि वे ऐतिहासिक कार्यों के कारणों और परिणामों को समझना चाहते हैं।

4. शिक्षण को व्यावहारिक एवं उपयोगी बनाना (Making Learning Practical and Useful):

  • व्याख्या: समस्या-समाधान सैद्धांतिक ज्ञान को व्यावहारिक अनुप्रयोग से जोड़ता है। यह अकादमिक विषयों की वास्तविक दुनिया की प्रासंगिकता को प्रदर्शित करता है, जिससे सीखने को सार्थक और लागू किया जा सकता है।
  • उदाहरण: एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम में, एक संघर्षरत कंपनी के बारे में केस स्टडी पर काम करने वाले छात्र व्यवसाय जगत पर लागू व्यावहारिक समस्या-समाधान कौशल सीखते हैं।

5. अच्छे गुणों एवं आदतों का विकास (Development of Good Qualities and Habits):

  • स्पष्टीकरण: समस्या-समाधान में संलग्न होने से धैर्य, दृढ़ता, लचीलापन और अनुकूलनशीलता जैसे गुणों को बढ़ावा मिलता है। ये गुण व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के लिए मूल्यवान हैं।
  • उदाहरण: एक कला कक्षा में, एक चुनौतीपूर्ण परियोजना पर काम करने वाले छात्र जिसके लिए कई पुनरावृत्तियों की आवश्यकता होती है, असफलताओं के बावजूद बने रहना सीखते हैं और अपनी रचनात्मक समस्या-समाधान क्षमताओं को विकसित करते हैं।

6. शिक्षक एवं विद्यार्थियों के बीच सकारात्मक संबंधों का विकास (Development of Positive Relations Between Teacher and Students):

  • स्पष्टीकरण: समस्या-समाधान में अक्सर शिक्षकों और छात्रों के बीच सहयोगात्मक प्रयास शामिल होते हैं। यह आपसी सम्मान, सहयोग और साझा लक्ष्यों पर आधारित एक सकारात्मक शिक्षक-छात्र संबंध को बढ़ावा देता है।
  • उदाहरण: एक साहित्य कक्षा में, छात्र और शिक्षक किसी उपन्यास की व्याख्या के बारे में जीवंत चर्चा और बहस में शामिल हो सकते हैं, जिससे सकारात्मक सीखने का माहौल तैयार हो सकता है।

7. वर्ग संबंधी समस्याओं से मुक्ति (Freedom from Class-Related Problems):

  • स्पष्टीकरण: समस्या-समाधान पारंपरिक कक्षा के मुद्दों जैसे रटने और निष्क्रिय सीखने से परे हो सकता है। यह सक्रिय जुड़ाव को बढ़ावा देता है और सामान्य वर्ग-संबंधी समस्याओं की संभावना को कम करता है।
  • उदाहरण: एक भाषा कक्षा में, बातचीत और इंटरैक्टिव अभ्यासों के माध्यम से समस्या-समाधान का अभ्यास करने वाले छात्रों को बोरियत और अलगाव से संबंधित कम मुद्दों का अनुभव होता है।
  • समस्या-समाधान पद्धति कई मनोवैज्ञानिक लाभ प्रदान करती है जो शैक्षिक अनुभव को समृद्ध करती है। यह छात्रों को सीखने को व्यावहारिक और आनंददायक बनाते हुए मानसिक शक्तियों, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, समस्या-समाधान क्षमताओं और सकारात्मक गुणों को विकसित करने का अधिकार देता है। इसके अलावा, यह शिक्षक-छात्र संबंधों को मजबूत करता है और अधिक आकर्षक और रचनात्मक शिक्षण वातावरण बनाता है, जो अंततः छात्रों के समग्र विकास में योगदान देता है।
  • तेजी से विकसित हो रहे समाज में, समस्या-समाधान के माध्यम से सामाजिक विज्ञान शिक्षा न केवल कल के नेताओं और परिवर्तनकर्ताओं को तैयार करती है, बल्कि ऐसे व्यक्तियों का पोषण भी करती है जो आज के सबसे गंभीर मुद्दों को सहानुभूतिपूर्वक और प्रभावी ढंग से संबोधित कर सकते हैं।
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समस्या समाधान विधि | problem solving method in Hindi

समस्या समाधान विधि | problem solving method in Hindi

समस्या समाधान विधि पर टिप्पणी लिखिये।

समस्या समाधान विधि :- समस्या समाधान विधि का लंबे समय तक गणित और विज्ञान से जुड़ाव रहा। किंतु आज इसे सामाजिक अध्ययन की प्रमुख विधियों में से एक माना जाता है। इसकी एक विधि की महत्ता को स्वीकार करते हैं और मानते हैं कि हमारे लोकतांत्रिक समाज में बच्चों के लिए समस्या समाधान निश्चित रूप से आवश्यक है।

समस्या समाधान को लेकर अनेक प्रकार के शोध मनोवैज्ञानियों द्वारा किए गए है। चूंकि इनमें से अधिकांश शोध प्रयोगशाला की स्थितियों में किए गए हैं और इनसे संबंधित प्रतिवेदन/शोध पत्र इतनी तकनीकी भाषा में लिखे गए हैं कि शिक्षकों को उन्हें समझने में काफी परेशानी आती है। आसान शब्दों में, समस्या समाधान को हम प्रगतिशील कदमों की एक श्रृंखला मान सकते हैं जो किसी व्यक्ति द्वारा तव प्रयोग किए जाते हैं जब वह किसी समस्या को हल करने के क्रम में हो। समस्या समाधान कोई एक कार्य न होकर निम्नलिखित कई कार्यों का समावेश है।

  • पहला स्तर जब व्यक्ति किसी समस्या जिसका समाधान आवश्यक है से रूबरू होता है।
  • आंकड़ा संग्रहण स्तरं जब व्यक्ति समस्या को बेहतर समझने की कोशिश करता है और समाधान के लिए सामग्री जुटाता है।
  • इस स्तर पर व्यक्ति कुछ संभावित हल तैयार करता है।
  • इस स्तर पर संभावित उत्तरों को जांचा जाता है।

सामाजिक अध्ययन की प्रायः सभी पाठ्यपुस्तकें समस्या समाधान विधि के रूप में उपरोक्त स्तरों के प्रयोग का समर्थन करती है। यह उल्लेखनीय है कि ये सभी स्तर जॉन ड्यूवी द्वारा आलोचनात्मक चिंतन के बताए स्तरों के समरूप हैं। हालांकि डिवी के द्वारा आलोचनात्मक चिंता के बताए स्तरों के समरूप हैं। हालांकि ड्यूवी का यह भी कहना है ‘चिंतन बुद्धिमत्तापूर्ण अधिगम का माध्यम है ऐसा अधिगम जिसमें मस्तिष्क शामिल भी रहता है और समृद्ध भी होता है।”

शिक्षकों द्वारा समस्या समाधान का प्रयोग

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि समस्या समाधान महत्वपूर्ण है अतः एक अनुमान लगा सकते हैं कि शिक्षक इसे एक प्रमुख माध्यम के रूप में प्रयोग करते होंगे। यद्यपि वास्तविक स्थिति हमें निराश ही करती है। कई शोध यह दर्शाते हैं कि शिक्षक सामाजिक अध्ययन में समस्या समाधान विधि को उचित महत्व नहीं देते और प्रयोग में नहीं लाते। अधिकांश शिक्षक बच्चों को तथ्यों और अवधारणाओं से परिचित करवाने तक ही सीमित रहते हैं। कुछ इससे आगे बढ़कर ‘सही’ अभिवृत्ति विकसित करने पर जोर देते हैं। ऐसी कोई गतिविधि, जिसमें बच्चे स्वयं सोचकर समाधान करके सीख सकें, व्यापक रूप से अनुपलब्ध है।

1. सबसे पहले शिक्षकों को सामाजिक अध्ययन को किसी पाठ्यपुस्तक के कुछ पन्नों के सीमित दृष्टिकोण से छूटकर एक व्यापक विषय के रूप में देखना होगा। यह दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अनिवार्य है।

2. शिक्षकों की कार्ययोजना भी इस प्रकार बनानी चाहिए कि बच्चे समस्या से परिमित हो सकें और शिक्षक के मार्गदर्शन में उसका हल भी खोज सकें।

3. शिक्षक की भूमिका बच्चों को अलग-अलग प्रकार की पुस्तकें और स्त्रोंत प्रयोग करने में प्रोत्साहित करने की होनी चाहिए। समस्या समाधान बच्चों की वस्तुओं में तुलना में करने, संबंधों को खोजने और अध्ययन करने के लिए अवसर प्रदान करता है।

IMPORTANT LINK

  • भूगोल शिक्षण के क्षेत्र में पर्यटन के महत्व, शिक्षक के लाभ एंव सीमाएँ
  • पारिस्थितिक तंत्र तथा विकास | सतत् विकास या जीवन धारण करने योग्य विकास की अवधारणा | सतत् विकास में भूगोल और शिक्षा का योगदान
  • राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा (NCF) 2005 की विशेषताएँ तथा सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम सम्बन्धी सुझाव
  • ‘भूगोल एक अन्तरा अनुशासक विषय है’
  • मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? भूगोल शिक्षण के मूल्यांकन में प्रयुक्त होने वाली प्रविधियाँ
  • स्थानीय भूगोल से आपका क्या आशय है? स्थानीय भूगोल अध्ययन के उद्देश्य
  • अधिगम कठिनाइयों का निदान और भूगोल में उनके उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था किस प्रकार करेंगें।
  • अन्तर्राष्ट्रीयता का सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिये। अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास में भूगोल की भूमिका
  • ‘भूगोल प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानो के मध्य पुल का काम करता है’
  • दैनिक पाठ योजना का अर्थ एंव परिभाषा | दैनिक पाठ योजना का महत्त्व | दैनिक पाठ योजना निर्माण के पद
  • विचार-विमर्श विधि का अर्थ, विशेषताएं, तत्व, प्रकार एंव इसके गुण व दोष
  • स्थानिक वितरण की संकल्पना तथा स्थानिक अन्तर्किया की संकल्पना
  • आदर्श इतिहास शिक्षक के गुण एंव समाज में भूमिका
  • विभिन्न स्तरों पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्चतर माध्यमिक स्तर
  • इतिहास शिक्षण के उद्देश्य | माध्यमिक स्तर पर इतिहास शिक्षण के उद्देश्य | इतिहास शिक्षण के व्यवहारात्मक लाभ
  • इतिहास शिक्षण में सहसम्बन्ध का क्या अर्थ है ? आप इतिहास शिक्षण का सह-सम्बन्ध अन्य विषयों से किस प्रकार स्थापित करेंगे ?
  • इतिहास क्या है ? इतिहास की प्रकृति एवं क्षेत्र
  • राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के विषय में आप क्या जानते हैं ?
  • शिक्षा के वैकल्पिक प्रयोग के सन्दर्भ में एस० एन० डी० टी० की भूमिका
  • राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एन.सी.एफ.-2005) [National Curriculum Framework (NCF-2005) ]

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इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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difference between project and problem solving method in hindi प्रायोजना विधि और समस्या समाधान विधि में अंतर क्या है ?

प्रश्न 4. प्रायोजना विधि व समस्या समाधान विधि में अन्तर बताइये। Dierentiate between project and problem solving method. उत्तर-प्रायोजना विधि-प्रायोजना विधि का मूल आधार प्रयोजनावाद है। इसके जनक दिलयम किल पैट्रिक माने जाते हैं। यह विधि जान डेवी के यथार्थवाद पर आधारित है। किल पैट्रिक ने कहा था कि छात्रों के सामने ऐसे अवसर लाने चाहिए कि जिनमें वे अपने साथियों की सहायता से निर्णय कर सकें कि उन्हें किस सीमा तक क्या पढ़ना है। इस प्रक्रिया में उन्हें सफलता का भी पता रहना चाहिए। समस्या समाधान विधि-यह शिक्षण की एक प्राचीन विधि है। इसमें छात्रों के सामने कोई समस्या रखी जाती है। इसके बाद छात्र विधि के चरणों को अपनाते हुए उसे हल करने का प्रयास करते हैं। शिक्षक समय-समय पर छात्रों की सहायता व जाँच करते हैं। इसमें छात्रों की चिन्तन शक्ति, निरीक्षण शक्ति, खोज करने की शक्ति का विकास होता है। यह एक व्यवहारिक विधि है । इसके अध्ययन से भविष्य में आने वाली समस्याओं को चरणबद्ध तरीके से हल करना सीखते हैं। प्रायोजना विधि व समस्या समाधान विधि में अन्तर- प्रायोजना विधि समस्या समाधान विधि 1. प्रायोजना विधि एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है। इसमें छात्र जो कार्य (प्रोजेक्ट) हाथ में लेते हैं उसे पूर्ण करना उनका प्रमुख उद्देश्य होता है। यहाँ मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार की क्षमताओं का उपयोग होता है। समस्या समाधान विधि बालक के गहन चिन्तन पर बल देती है। मुख्य रूप से एक मानसिक प्रक्रिया है। 2. प्रायोजना विधि का मूल आधार प्रायोजनावाद है। समस्या समाधान विधि मनोविज्ञान की विचारधारा पर आधारित है। 3. प्रायोजना विधि किसी समस्यामूलक कार्य को करने पर बल देती है। समस्या समाधान विधि मात्र समस्या के बारे में चिंतन करके उसे हल करने पर बल देती है। 4. प्रायोजना विधि में पहले से तय किए गए क्रमबद्ध चरणों के आधार पर उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। समस्या समाधान विधि में क्रमबद्ध चरणों का पालन अनिवार्य नहीं है। इसमें मुख्यतः विचार-विमर्श द्वारा समस्या का हल खोजा जाता है। 5. प्रायोजना विधि का अंतिम परिणाम प्रायः किसी उत्पाद के रूप में होता है। समस्या समाधान विधि का परिणाम निष्कर्ष के रूप में होता है। 6. यह विधि ज्ञान, अवबोध व कौशल पर बल देती है। समस्या समाधान विधि में कौशल विकसित होना महत्वपूर्ण नहीं है। इसमें मुख्यतः ज्ञान व अवबोध का विकास होता है। 7. यह विधि प्रायः बड़ी कक्षाओं के लिए उपयुक्त है। परन्तु छोटी कक्षाओं में भी छात्रों को छोटे-छोटे प्रोजेक्ट दिए जा सकते हैं। यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है।

प्रश्न 3. अच्छे प्रदर्शन की क्या विशेषताएँ होती हैं ? What are the characteristics of a good demonstration ? उत्तर- अच्छे प्रदर्शन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं 1. नियोजित प्रदर्शन-प्रदर्शन विस्तृत रूप से नियोजित (Planned) होने चाहिए। प्रदर्शन के लिए विभिन्न सावधानियों को मस्तिष्क में रखना चाहिए। 2. स्पष्ट उद्देश्य व लक्ष्य-प्रदर्शन के उद्देश्य और लक्ष्य शिक्षक के मन में स्पष्ट होने चाहिए। 3. समस्यात्मक-प्रदर्शन विधि द्वारा विद्यार्थियों के सम्मुख समस्या उत्पन्न की जानी चाहिए और समस्या का समाधान भी साथ ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए। 4. सभी को दिखाई दे-प्रदर्शन की प्रक्रिया कक्षा में सभी विद्यार्थियों को दिखाई देनी चाहिए। ऐसा न हो कि कुछ विद्यार्थी प्रदर्शन को देखने से वंचित रह जाएँ। 5. सुव्यवस्थित-प्रदर्शन के लिए प्रयुक्त होने वाले सामान को व्यवस्थित रखना चाहिए। जटिल सामान का प्रयोग विद्यार्थियों को कुछ सीखने से रोकता है। 6. सरलता व सहजता-प्रदर्शन बहुत ही सरल और गति से होना चाहिए। 7. रूचिपूर्ण-प्रदर्शन के समय विद्यार्थियों की रुचि और ध्यान बनाये रखा जाना चाहिए। 8. छात्रों द्वारा सम्पन्न–प्रदर्शन में प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं का प्रयोग विद्यार्थियों द्वारा किया जाना चाहिए। 9. उद्देश्यपूर्ण-शिक्षक को प्रदर्शन के उद्देश्य स्पष्ट होने के साथ-साथ इस प्रदर्शन से उसको क्या सामान्यीकरण करना है इसका ज्ञान भी होना आवश्यक है। प्रदर्शन के उद्देश्यों के अनुसार ही उसे प्रदर्शन करना चाहिए। 10. उपकरणों का संयोजन-प्रदर्शन में प्रयुक्त उपकरणों को क्रम में रखना चाहिए तथा इसे शिक्षक अपनी बायीं ओर रखें और प्रयोग किए गए उपकरणों को अपनी दायीं ओर रखता चला जाए। 11. सहायक सामग्री का उपयोग-प्रदर्शन में अन्य सहायक सामग्री जैसे-चार्ट मॉडलों आदि का प्रयोग भी किया जाना चाहिए। 12. पारस्परिक सहयोग-प्रदर्शन में विद्यार्थियों और शिक्षकों का आपसी सहयोग आवश्यक है। इसके बिना प्रदर्शन सफल नहीं हो सकता। शिक्षक उपकरणों आदि की व्यवस्था करने तथा उसे सैट करने में विद्यार्थियों की सहायता ले सकता है।

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समस्या समाधान विधि अर्थ ,विशेषताएं, सोपान ,गुण और दोष|Problem Solving Method in hindi

B.Ed Notes 

शिक्षण की समस्या समाधान विधि (Problem Solving Method Of Teaching) 

शिक्षण की समस्या समाधान विधि|Problem Solving Method in hindi

समस्या समाधान विधि का जन्म प्रयोजनावाद के फलस्वरूप हुआ है। समस्या समाधान विधि के प्रबल समर्थको में किलपेट्रिक और जॉन डीवी का नाम उल्लेखनीय है।

                    समस्या समाधान विधि योजना विधि से पर्याप्त समानता है। इन दोनों विधियों में अंतर इस बात का है कि योजना विधि में प्रायोगिक कार्य को महत्व दिया जाता है। यह प्रायोगिक कार्य एक वास्तविक स्थिति में संपन्न किया जाता है जबकि समस्या समाधान विधि में मानसिक निष्कर्षों पर अधिक बल दिया जाता है।

              दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि योजना विधि में शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की क्रियाएं सम्मिलित है जबकि समस्या समाधान विधि में केवल मानसिक हल ही प्रदान किया जाता हैं।

                 इस प्रकार समस्या समाधान विधि विद्यार्थी की मानसिक क्रिया पर आधारित विधि है जिसमे छात्र समस्या का चयन करके स्वयं के विचारो और तर्क शक्ति के आधार पर मानसिक रूप से समस्या का हल ढूंढ कर नवीन ज्ञान प्राप्त करता है।

स्किनर के शब्दों में - "समस्या समाधान विधि एक ऐसी रूपरेखा है जिसमे सृजनात्मक चिंतन तथा तर्क होते है।"

इस विधि के निम्नांकित सोपान हैं-

(1) समस्या का चयन,

(2) समस्या का प्रस्तुतीकरण,

(3) तथ्यों का एकत्रीकरण,

(4) परिकल्पना का निर्माण,

(5) समाधानात्मक निष्कर्ष पर पहुँचना,

(6) मूल्यांकन,

(7) कार्य का आलेखन ।

Read also -  एक अच्छे मापन उपकरण की विशेषताएं

विशेषताएँ (Characteristics) 

(1) छात्र समस्याओं का स्वतः हल करना सीखते हैं।

(2) उनमें निरीक्षण एवं तर्क शक्ति का विकास होता है।

(3) वे सामान्यीकरण करने में समर्थ होते हैं।

(4) वे आँकड़ों के एकीकरण, मूल्यांकन एवं निष्कर्ष निकालने की प्रक्रियाओं से परिचित होते हैं।

(5) नवीन सन्दर्भ में पुराने तथ्यों का प्रयोग करना सीखते हैं।

(6) मिल-जुलकर कार्य करने की भावना जाग्रत होती है।

(7) यह प्रेरणात्मक विधि है।

(8) यह “Learning by doing" पर आधारित है।

(1) इस विधि के प्रयोग से छात्र सबसे उत्तम क्या है? के विषय में सोचना, निर्णय, तुलना तथा मूल्याकंन करना सीख जाते हैं।  

2) इस विधि के प्रयोग से छात्र समस्या हल करने के ढंग को सीख जाते हैं। 

(3)इसके द्वारा छात्र तथ्यों को संग्रह एवं व्यवस्थित करना सीख जाते हैं।

(4) इससे बालकों में स्वाध्ययन की आदत का निर्माण होता है।

(5)इसके द्वारा राष्ट्रीय एंव सामाजिक समस्याओं के आर्थिक पक्षों को समझने की सूझ का विकास होता है।

(6)इससे छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण उत्पन्न हो जाता है तथा वे मुद्रित पृष्ठों का अन्धानुकरण नहीं करते।

(7) इसके प्रयोग से छात्र स्व-क्रिया द्वारा ज्ञान अर्जित करते हैं।

(8) यह विधि छात्रों को अपने ज्ञान को समन्वित करने में सहायता देती है।

(9) इसमें वैयक्तिक विभिन्नताओं को संतुष्ट किया जाता है।

दोष (Demerits) या सीमायें -

(1) समय और शक्ति का अपव्यय होता है।

(2) इस विधि में निष्कर्ष के गलत होने का भी भ्रम बना रह सकता है।

(3) इस विधि के प्रयोग के लिए योग्य शिक्षकों की आवश्यकता है।

( 4 ) यह विधि छोटी कक्षाओं में उपयोगी नहीं है।

5) यदि इस विधि का प्रयोग बारम्बार किया गया तो यह नीरस एवं यान्त्रिक बन जाती है।

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